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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
. शब्दार्थ - सण्णद्ध - तैयार हुए, बद्ध - कमर बांधी, वम्मियकवया - वर्मितकवचशरीर पर कवच धारण किया, उप्पीलियसरासणपट्टिया - धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाई, आउह - आयुध-धनुष बाण आदि शस्त्र, पहरणा - प्रहरण-तलवार, भाला आदि हथियार, उत्तारेंति - बाहर निकालते हैं।
भावार्थ - धन्य सार्थवाह द्वारा यों कहे जाने पर नगर रक्षक तैयार हुए, कमर कसी, देह पर कवच धारण किया, धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई। अनेक प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित हुए। सार्थवाह के साथ राजगृह नगर के पूर्वोक्त अनेकानेक स्थानों में खोज करते हुए, गवेषणा करते हुए, नगर के बाहर पहुँचे। जीर्ण उद्यानवर्ती टूटे फूटे कुएं के पास आए। कुएं में देवदत्त के निष्प्राण शरीर को देखा। सहसा उनके मुख से निकल पड़ा - हाय! कितना नृशंस कर्म हुआ। यों कह कर उन्होंने देवदत्त के शरीर को भग्न कूप से बाहर निकाला और धन्य सार्थवाह के हाथों में सौंपा। चोर की गिरफ्तारी एवं सजा
(२६) . ___तए णं ते णगरगुत्तिया विजयस्स तक्करस्स पयमग्ग-मणुगच्छमाणा जेणेव मालुयाकच्छए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मालुयाकच्छयं अणुप्पविसंति २ ता विजयं तक्करं ससक्खं सहोढं सगेवेजं जीवग्गाहं गेण्हंति २ ता अट्ठिमुट्ठि-जाणु-कोप्पर-पहार-संभग्ग-महियगत्तं करेंति २ त्ता अवउडा बंधणं करेंति २ त्ता देवदिण्णस्स दारगस्स आभरणं गेण्हंति २ ता विजयस्स तक्करस्स गीवाए बंधंति २ त्ता मालुयाकच्छयाओ पडिणिक्खमंति २ ता जेणेव रायगिहे णयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता रायगिहं णयरं अणुप्पविसंति २ ता रायगिहे णयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-महापहपहेसु कसप्पहारे य लयापहारे य छिवापहारे य णिवाएमाणा २ छारं च धूलिं च केयवरं च उवरिं पक्किरमाणा २ महया २ सद्देणं उग्रोसेमाणा एवं वयंति
शब्दार्थ - पयमग्ग-मणुगच्छमाणा - पैरों के निशानों का अनुगमन करते हुए, ससक्खं
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