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________________ बीयं अज्झयणं : संघाडे संघाट नामक द्वितीय अध्ययन जइणं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणंजाव संपत्तेणं पढमस्स णायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते बिइयस्स णं भंते! णायज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते? भावार्थ - आर्य जंबू ने आर्य सुधर्मा स्वामी से निवेदन किया कि अनन्त गुण संपन्न, सिद्धि प्राप्त भगवान् महावीर स्वामी ने प्रथम अध्ययन का जो अर्थ-विवेचन प्रतिपादित किया, वह मैं आप से सुन चुका हूँ। भगवन्! कृपया बतलाएँ उन्होंने दूसरे ज्ञाताध्ययन का क्या अर्थ व्याख्यात किया है? (२) एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णामं णयरे होत्था वण्णओ*। तस्स णं रायगिहस्स णयरस्स बहिया. उत्तरपुरित्थमे दिसीभाए गुणसिलए णामं चेइए होत्था वण्णओ *। भावार्थ - आर्य सुधर्मा स्वामी बोले - जंबू! उस काल-वर्तमान अवसर्पिणी के चतुर्थ आरे के अंत में, उस समय जब भगवान् महावीर स्वामी विराजित थे, राजगृह नामक नगर था। वह राजोचित सभी महिमाओं से मंडित था। राजगृह नगर के बाहर उत्तर पूर्व दिशा भाग में गुणशील नामक चैत्य था। इन तीनों का विस्तृत वर्णन औपपातिक सूत्र से ग्राह्य है। (३) तस्स णं गुणसिलयस्स चेइयस्स अदूरसामंते एत्थ णं महं एगे पडियजिण्णुजाणे यावि होत्था विणट्ठदेवउले परिसडिय-तोरणघरे णाणाविह-गुच्छगुम्म-लया-वल्लि-वच्छच्छाइए अणेग-वालसय-संकणिजे यावि होत्था। टिप्पणियां - * उववाइय - सुत्त, सूत्र १ पृष्ठ-१-६, २. उववाइय - सुत्त सूत्र २ पृ० १०-१४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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