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________________ प्रथम अध्ययन - अंततः सिद्धत्व-लाभ १६१ (२१५) तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं तेतीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। शब्दार्थ - ठिई - स्थिति, पण्णत्ता - परिज्ञापित हुई है-बतलाई गई है। भावार्थ - वहाँ कतिपय देवों की स्थिति तैंतीस सागरोपम बतलाई गई है। उनमें मेघकुमार देव की स्थिति भी तैंतीस सागरोपम की समझनी चाहिये। . ... (२१६) तत्थ णं मेहस्सवि देवस्स तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। एस णं भंते! . मेहे देवे ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ, कहिं उव्वजिहिइ? __ शब्दार्थ - चयं - देव भव संबंधी शरीर, चइत्ता - त्याग कर, गच्छिहिइ - जायेगा, उववजिहिइ - उत्पन्न होगा। भावार्थ - गणधर गौतम ने पुनः जिज्ञासा की - भगवन्! देव मेघकुमार देवलोक में आयु । स्थिति एवं भव का क्षय कर-तत्कारणभूत कर्मों का नाश कर देव संबंधी देह का त्याग कर किस गति में जायेगा, कहाँ उत्पन्न होगा? अंततः सिद्धत्व-लाभ . (२१७) गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ। शब्दार्थ - महाविदेहेवासे - महाविदेह क्षेत्र में, सिज्झिहिइ - सिद्धत्व प्राप्त करेगा, बुज्झिहिइ - विमल केवल ज्ञान के आलोक से लोक एवं अलोक को जानेगा, मुच्चिहिइ - समस्त कर्मों से मुक्त होगा, परिणिव्वाहिइ - परिनिर्वृत होगा-सर्व कर्मजनित विकारों से रहित होगा, काहिइ - करेगा। . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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