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________________ प्रथम अध्ययन - देवत्व-प्राप्ति १८४ शब्दार्थ - अंतेवासी - शिष्य, पगइभद्दए - स्वभाव से भद्र, विणीए - विनीत, अम्हेहिं सद्धिं - हमारे साथ, पडियाइक्खिए - प्रत्याख्यान किया। - भावार्थ - देवानुप्रिय! आपका अन्तेवासी मुनि मेघकुमार जो स्वभाव से भद्र था, विनीत था, आप से आज्ञा लेकर गौतम आदि श्रमण-निर्ग्रन्थों एवं निर्ग्रन्थिनियों से क्षमत-क्षमापना कर विपुलाचल पर चढ़ा। वहाँ स्वयं ही गहरे बादल के सदृश श्याम वर्णिक पृथ्वी शिलापट्ट का प्रतिलेखन किया, आहार पानी का परित्याग किया; क्रमशः वह कालगत हुआ। भगवन्! ये मेघ कुमार के उपकरण हैं। .. देवत्व-प्राप्ति (२१३) भंते! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी मेहे णामं अणगारे, से णं भंते! मेहे अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए, कहिं उववण्णे? ... शब्दार्थ - कालमासे - मृत्यु का समय आने पर, कालं किच्चा - प्राण त्याग कर, उववण्णे - उत्पन्न हुआ। - भावार्थ - गणधर गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वंदन-नमन कर पूछा-भगवन्! आपका अंतेवासी मुनि मेघकुमार अपना आयुष्य पूर्ण कर देह त्याग कर कहाँ गया, कहाँ उत्पन्न हुआ? (२१४) गोयमाइ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी-एवं खलु गोयमा! मम अंतेवासी मेहे णामं अणगारे पगइभद्दए जाव विणीए से णं तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिजइ २ त्ता बारस भिक्खुपडिमाओ गुणरयणसंवच्छरं तवोकम्मं काएणं फासेत्ता जाव किट्टेत्ता मए अब्भणुण्णाए समाणे गोयमाइ थेरे खामेइ २ ता तहारूवेहिं जाव विउलं पव्वयं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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