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प्रथम अध्ययन - समाधि-मरण ...
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भावार्थ - वे ज्ञान वृद्ध, शीलवृद्ध, सेवाभावी स्थविर भगवन्त अग्लान भाव से मुनि मेघकुमार की सेवा-परिचर्या करने लगे।
- विवेचन - मुनि मेघकुमार ‘पादपोपगम' समाधिमरण स्वीकार कर चुके थे, जहाँ साधक न तो अपने देह की किसी भी प्रकार की देखभाल या परिचर्या करता है और न किन्हीं दूसरों से ही सेवा वैयावृत्य करवाता है। ऐसी स्थिति में स्थविर भगवंतों द्वारा उनके वैयावृत्य किए जाने का जो उल्लेख हुआ है, वह प्रश्न उपस्थित करता है कि वहाँ तो वैयावृत्य की कोई प्रासंगिकता ही नहीं थी, फिर ऐसा उल्लेख कैसे हुआ? ___ गंभीरता से चिंतन करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि यद्यपि शारीरिक सेवा या परिचर्या वहाँ अपेक्षित नहीं थी, यह संही है, पर साधक के उस अन्तिम काल में जब वह त्याग की चरम पराकाष्ठा पर होता है वातावरण अत्यंत आध्यात्मिक रहे यह आवश्यक है। वे गीतार्थ स्थविर भगवंत वातावरण को आगम-पाठ धर्मानुगान, तत्त्वानुशीलन इत्यादि द्वारा सर्वथा विशुद्ध पावन बनाते हुए निःसंदेह महती सेवा देते थे, जो वैयावृत्य का आध्यात्मिक रूप था। इसी सूक्ष्म भाव को उद्दिष्ट कर यहाँ 'वेयावडियं करेंति' इस पद का प्रयोग हुआ है।
(२१०) तए णं से मेहे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता बहुपडिपुण्णाई दुवालसवरिसाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता सहि भत्ताई अणसणाए छेएत्ता आलोइय पडिक्कंते उद्धियसल्ले समाहिपत्ते आणुपुत्वेणं कालगए।
शब्दार्थ - अहिजित्ता - अध्ययन करके, सामण्णपरियागं - श्रामण्य पर्याय-चारित्रमय साधु जीवन, पाउणित्ता - पालन कर, झोसेत्ता - क्षीण कर, छेएत्ता - छेद कर, आलोइय पडिक्कंते - आलोचन-प्रतिक्रमण करके, उद्धियसल्ले - शल्यों को अपगत कर।
भावार्थ - मुनि मेघकुमार, जिसने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के सुयोग्य गीतार्थ स्थविरों से सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया था, लगभग बारह वर्ष के चारित्रमय श्रमण जीवन का पालन किया था, एक मास की संलेखना द्वारा शरीर को क्षीण करते हुए,
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