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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
(१६७) तए णं तुमं मेहा! अण्णया कयाइ पाउस-वरिसारत्त-सरय-हेमंत-वसंतेसु कमेण पंचसु उऊसु समइक्कंतेसु गिम्हकाल-समयंसि जेट्टामूलमासे पायव-घंससमुट्ठिएणं सुक्कतण-पत्त-कयवर-मारुय-संजोगदीविएणं महाभयंकरेणं हुयवहेणं वण-दवजाला- संपलित्तेसु, वणंतेसु धूमाउलासु दिसासु महावायवेगेणं संघट्टिएसु . छिण्णजालेसु आवयमाणेसु पोल्लरुक्खेसु अंतो-अंतो झियायमाणेसु मय-कुहियविण?-किमियकद्दमणई वियरग-ज्झीण्ण-पाणीयंतेसु वणंतेसु भिंगारकदीणकंदियरवेसु खर-फरुस अणि?-रिट्ठवाहीत्त विददुमग्गेसु दुमेसु तण्हावसमुक्क-पक्ख पयडिय जिब्भ-तालुय-असंपुडिय-तुंडपक्खिसंघेसु ससंतेसु गिम्हउम्ह-उण्ह वाय खरफरुस-चंडमारुय सुक्कतण पत्तकयवर वाउलि-भमंत-दित्तसंभंत-सावयाउल-मिगतण्हा बद्ध-चिंधपट्टेसु गिरिवरेसु संवट्टिएसु, तत्थ-मियपसय-सरीसिवेसु अवदालिय-वयण विवर-णिल्लालियग्गजीहे महंत-तुंबइयपुण्ण कण्णे संकुचिय थोर-पीवरकरे-ऊसियणंगुले पीणाइय-विरस-रडियसद्देणं फोडयंतेव अंबरतलं पायदद्दरएणं कंपयंतेव मेइणितलं विणिम्मुयमाणे य सीयारं सव्वओ समंता वल्लि-वियाणाई छिंदमाणे रुक्खसहस्साई तत्थ सुबहूणि णोल्लायंते विणट्टरट्टेव्व णरवरिंदे वायाइद्धेव्व पोए मंडलवाएव्व परिन्भमंते अभिक्खणं २ लिंडणियरं पमुंचमाणे २ बहूहिं हत्थीहि य जाव सद्धिं दिसोदिसिं विप्पलाइत्था।
शब्दार्थ - अण्णया - अन्य समय, कयइ - कदापि, समइक्कंतेसु - व्यतीत होने पर, गिम्हकालसमयंसि - ग्रीष्मकाल के समय, जेट्ठामूलमासे - जेठ के महीने में, पायव-घंससमुट्ठिएणं - वृक्षों के घर्षण से उत्पन्न, कयवर - कचरा, दीविएणं - प्रज्वलित, हुयवहेणंअग्नि द्वारा, वणदव - दावाग्नि - वन की आग, धूमाउलासु - धुंए से व्याप्त, महावायवेगेणंवायु के भयंकर आघात से, आवयमाणेसु - फैल जाने पर, पोल्लरुक्खेसु - खोखले वृक्षों में, झियायमाणेसु - जलते हुए, मय - मृत, कुहिय - दुर्गंधित, किमि - कृमि-कीड़े,
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