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________________ १३६ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र शब्दार्थ-पिया - पिता, णिजोय-पगड़ी, वरतरुणाणं-उत्तम युवाओं को, संदिसह - आज्ञा दें। भावार्थ - मेघकुमार के पिता ने कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और कहा कि शीघ्र ही एक हजार युवा सेवकों को बुलाओ, जो दैहिक कांति एवं वय में समान हों और एक जैसे गहने एवं पगड़ियाँ धारण किए हुए हों। कौटुंबिक पुरुष वैसा ही करते हैं। श्रेणिक राजा के कौटुंबिक पुरुषों द्वारा बुलाए गए युवा सेवक प्रसन्न हुए। उन्होंने स्नानादि आवश्यक कार्य किए। एक जैसे आभरण, गहने तथा पगड़ियाँ पहनी और राजा श्रेणिक के पास आए तथा निवेदन किया - 'देवानुप्रिय! हमारे लिए जो करणीय हो, उसकी आज्ञा दीजिये।' (१५२) तए णं से सेणिए राया तं कोडुंबिय-वरतरुण सहस्सं वयासी - गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! मेहस्स कुमारस्स पुरिस सहस्स वाहिणीं सीयं परिवहेह।... तए णं तं कोडंबिय-वरतरुण-सहस्सं सेणिएणं रण्णा एवं वुत्तं संतं हठं . तुळं तस्स मेहस्स कुमारस्स पुरिस-सहस्स-वाहिणिं सीयं परिवहइ। शब्दार्थ - परिवहेह - उठाओ। भावार्थ - राजा श्रेणिक ने उन एक हजार युवा सेवकों से कहा कि जाओ और सहस्र पुरुषों द्वारा वहन करने योग्य शिविका को उठाओ। . उन युवा सेवकों ने राजा श्रेणिक द्वारा यों आज्ञा दिए जाने पर बड़ी प्रसन्नता पूर्वक उस पालकी का परिवहन किया। (१५३) तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स पुरिस-सहस्स-वाहिणिं सीयं दुरूढस्स समाणस्स इमे अट्ठ-मंगलया तप्पढमयाए पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठिया, तंजहासोत्थिय-सिरिवच्छ-णंदियावत्त-वद्धमाणग-भद्दासण-कलस-मच्छ-दप्पण जाव बहवे अत्थत्थिया जाव ताहिं इट्टाहिं जाव अणवरयं अभिणंदंता य अभिथुणंता य एवं वयासी - शब्दार्थ - तप्पढमयाए - सर्व प्रथम, अहाणुपुव्वीए - यथाक्रम, संपट्ठिया - संप्रस्थित Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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