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________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र केश राशि बिखर गयी । मूर्च्छा के कारण वह निढाल हो गई। कुठार से काटी गई चंपक लता जैसी प्रतीत होने लगी । इन्द्र- महोत्सव के समाप्त हो जाने पर, इन्द्र स्तंभ के समान वह शोभाविहीन हो गई। उसके शरीर के जोड़ ढीले पड़ गए तथा वह रत्न - जटित आंगन पर धड़ाम गिर पड़ी। ११४ ( १२० ) तणं सा धारिणी देवी ससंभमो-वत्तियाए तुरियं कंचणभिंगार - र-मुह विणिग्गय - सीयल जल- विमलधाराए परिसिंचमाणा णिव्वाविय गांयलट्ठी उक्खेवण - तालविंट वीयणग-जणियवाएणं सफुसिएणं अंतेउर - परियणेणं आसासिया समाणी मुत्तावलि -सण्णिगास - पवडंत - अंसुधाराहिं सिंचमाणी पओहरे कलुण-विमणदीणा रोयमाणी कंदमाणी तिप्पमाणी सोयमाणी विलवमाणी मेहं कुमारं एवं वयासी । शब्दार्थ - ससंभ अकस्मात, घबराहट के साथ, उवत्तियाए - उडेले गए, भिंगार झारी, उक्खेवण - उत्क्षेपण - विशेष रूप से हवा करने वाले, तालविंट - ताड़ के पत्ते से बने, वीयणग वीजनक - पंखा, सफुसिएणं जलकणयुक्त, अंतेउर - परियणेणं - अंतःपुर की दासियों द्वारा, आसासिया- आश्वासित होश में लाई गई, मुत्तावलि - मोतियों की माला, सण्णिगास - सदृश, अंसु-अश्रु, पओहरे- पयोधर - स्तन, कलु कारुण्य युक्त, रोयमाणीरोती हुई, कंदमाणी - उच्च स्वर से क्रन्दन करती हुई, तिप्पमाणी - पसीना तथा लार गिराती हुई, सोयमाणी - हृदय से शोक करती हुई, विलवमाणी- आर्त्तस्वर से विलाप करती हुई । भावार्थ - दासियों ने जब यों देखा तो उन्होंने तत्काल, शीघ्रता से, हड़बड़ाहट के साथ, सोने की झारी से रानी पर शीतल जल की निर्मल धारा से पानी छिड़का, जिससे उसका शरीर शीतल हो गया । ताड़ के पत्तों से बने हुए पंखे से उन्होंने रानी पर हवा की । वह हवा जलकणों के मिश्रण से बड़ी शीतल थी। रानी होश में आई, उसकी आँखों से मोतियों की माला के समान आँसुओं की धारा बहती हुई, उसके स्तनों पर गिरने लगी। वह दयनीय, उदास और दीनता पूर्ण दिखाई देने लगी। वह रुदन एवं क्रंदन करने लगी। उसकी देह से पसीना टपकने लगा। हृदय शोक-संविग्न हो गया। वह विलाप करती हुई मेघकुमार से बोली । Jain Education International - - For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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