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प्रथम अध्ययन - गर्भ की सुरक्षा
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जेणामेव सए भवणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता विउलाई माणुस्सगाई भोगभोगाई जाव विहरइ। _____ भावार्थ - फिर रानी धारिणी सेचनक हस्ती पर आरूढ होकर, वहाँ से रवाना हुई। राजा श्रेणिक उसका अनुसरण करने लगा। यों चतुरंगिणी सेना से घिरी हुई, वह राजगृह नगर के बीच से होती हुई, अपने महल में आ गई। मानव जीवन संबंधी उत्तम, विपुल भोगों का भोग करती हुई पूर्ववत् रहने लगी।
देव को विदाई
(८४) तए णं से अभए कुमारे जेणामेव पोसहसाला तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुव्वसंगइयं देवं सक्कारेइ सम्माणेइ स० २ त्ता पडिविसज्जेइ।
भावार्थ - अभयकुमार पौषधशाला में आया, अपने पूर्वजन्म के मित्रदेव का सत्कार किया। उसे ससम्मान विदा किया। .
(८५) तए णं से देवे सगज्जियं पंचवण्ण-मेहो व सोहियं दिव्वं पाउससिरिं पडिसाहरइ २ जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए।
भावार्थ - तब उस देव ने गर्जना सहित पाँच वर्गों के मेघों से शोभित दिव्य वर्षा ऋतु की छटा का प्रतिसंहनन किया, उसे वापस समेटा। वैसा कर वह जिस दिशा से आया था, उसी दिशा की ओर चला गया।
गर्भ की सुरक्षा
(८६) तए णं सा धारिणी देवी तंसि अकालदोहलंसि विणीयंसि सम्माणियदोहला तस्स गब्भस्स अणुकंपणट्ठाए जयं चिट्ठइ, जयं आसयइ, जयं सुवइ, आहारं पि
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