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________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! हय-गय-रहजोह पवरकलियं चाउरंगिणिं सेण्णं सण्णाहेह सेयणयं च गंधहत्थिं परिकप्पेह। तेवि तहेव जाव पच्चप्पिणंति। भावार्थ - फिर राजा श्रेणिक ने कौटुम्बिक पुरुषों को दुबारा बुलाया और कहा कि देवानुप्रियो! अश्व, गज, रथ एव पदाति से युक्त, चतुरंगिणी सेना को तथा सेचनक नामक गंध हस्ती को तैयार करवाने की व्यवस्था करो। कौटुम्बिक पुरुषों ने वैसा कर राजा को अवगत कराया। (७६) तए णं से सेणिए राया जेणेव धारिणी देवी तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धारिणिं देविं एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिएं! सगज्जिया जाव पाउससिरी पाउन्भूया, तं णं तुमं देवाणुप्पिए! एयं अकालदोहलं विणेहि। भावार्थ - ऐसा होने पर राजा श्रेणिक धारिणी देवी के यहां आया और बोला - देवानुप्रिये! शोभामय वर्षा ऋतु प्रादुर्भत हुई है, बादल गरज रहे हैं, बिजली चमक रही है, बूंदै गिर रही है। तुम अपने दोहद को सुसंपन्न करो। (८०) तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणी हट्टतुट्ठा जेणामेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुप्पविसइ २ त्ता अंतो अंतेउरंसि ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता किं ते वरपायपत्तणेउर जाव आगासफालिय-समप्पभं अंसुयं-णियत्था सेयणयं गंधहत्थिं दुरूढा समाणी अमयमहिय-फेणपुंज-सण्णिगासाहिं सेयचामर-वालवीयणीहिं वीइज्जमाणी २ संपत्थिया। शब्दार्थ - णियत्था - धारण किया, सण्णिगासा - सदृश, समान। ' भावार्थ - महाराज श्रेणिक द्वारा यों कहे जाने पर रानी धारिणी बहुत प्रसन्न और परितुष्ट हुई। वह स्नानघर में प्रविष्ट हुई, स्नान किया, यावत् स्नान सम्बन्धी सम्पूर्ण विधि पूर्ण की। नूपुर, करधनी, हार, बाजूबंद आदि मणिरत्न जटित आभरण धारण किए। आकाश एवं स्फटिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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