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________________ ' तृतीय प्रतिपत्ति - सुधर्मा सभा का वर्णन ७५ उन मणिपीठिकाओं के ऊपर अलग अलग चार जिनप्रतिमाएं कही गई हैं जो जिनोत्सेध प्रमाणपांच सौ धनुष प्रमाण हैं, पालथी आसन से बैठी हुई हैं, उनके मुख स्तूप की ओर हैं। इन प्रतिमाओं के नाम इस प्रकार हैं - ऋषभ, वर्द्धमान, चन्द्रानन और वारिषेण। विवेचन - यहां पर जो जिनपडिमाएं कही गई हैं उसका अर्थ - 'पर्यंकासन से बैठी हुई शाश्वत प्रतिमाएं' होता है। सरागी जीवों के वर्णन के समान इनके शरीर का वर्णन भी नख से शिख पर्यंत होने से एवं स्तनों का वर्णन होने से इन्हें तीर्थंकरों की प्रतिमा नहीं समझा जाता है। तेसि णं चेइयथूभाणं पुरओ तिदिसिं पत्तेयं पत्तेयं मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ, ताओ णं मणिपेढियाओ दो दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं जोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमईओ अच्छाओ लण्हाओ सहाओ घट्ठाओ मट्ठाओ णिप्पंकाओ णिरयाओ जाव पडिरूवाओ॥ - तासि णं मणिपेढियाणं उप्पिं पत्तेयं पत्तेयं चेइयरुक्खा पण्णत्ता, ते णं चेइयरुक्खा अट्ठ जोयणाई उड्डूं उच्चत्तेणं अद्धजोयणं उव्वेहेणं दो जोयणाइं खंधी अद्धजोयणं विक्खंभेणं छजोयणाई विडिमा बहुमज्झदेसभाए अट्ठजोयणाई आयामविक्खंभेणं साइरेगाइं अट्ठजोयणाई सव्वग्गेणं पण्णत्ताई॥ - भावार्थ - उन चैत्य स्तूपों के आगे तीन दिशाओं में अलग-अलग मणिपीठिकाएं कही गई हैं। वे मणिपीठिकाएं दो-दो योजन की लम्बी चौड़ी और एक योजन मोटी है। सर्व मणिमय हैं, स्वच्छ, मृदु, चिकनी, घिसी हुई, मंजी हुई, पंकरहित, रजरहित यावत् प्रतिरूप हैं। उन मणिपीठिकाओं के ऊपर अलग-अलग चैत्यवृक्ष (चबूतरे पर आये हुए वृक्ष) कहे गये हैं। वे चैत्यवृक्ष आठ योजन ऊचे हैं, आधा योजन जमीन मे हैं, दो योजन ऊंचा उनका स्कन्ध (तना) है, आधा योजन उस स्कंध का विस्तार है, मध्यभाग में ऊर्ध्व विनिर्गत शाखा (विडिमा) छह योजन ऊंची है। उस विडिमा का विस्तार आधे योजन का है। सब मिला कर वे चैत्यवृक्ष आठ योजन से कुछ अधिक ऊंचे हैं। . तेसि णं चेइयरुक्खाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तंजहा - वइरामया मूला रययसुपइट्ठिया विडिमा रिट्ठामयविपुल-कंदवेरुलियरुइलखंधा, सुजाय रूवपढमग-विसालसाला, णाणामणिरयण-विविह-साहप्पसाहवेरुलिय-पत्ततवणिज्जपत्तवेंटा जंबूणयरत्तमउय-सुकुमाल-पवाल-पल्लव-सोभंतवरंकुरग्गसिहरा विचित्तमणिरयण-सुरभिकुसुमफलभरणमियसाला सच्छाया सप्पभा समिरिया सउज्जोया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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