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________________ ५६ जीवाजीवाभिगम सूत्र सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा महया महया मत्तगयमुहागिइसमाणा पण्णत्ता समणाउसो॥ तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो आयंसगा पण्णत्ता, तेसि णं आयंसगाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तंजहा-तवणिज्जमया पगंठगा वेरुलियमया छरुहा (थंभया) वइरामया वरंगा णाणामणिमया वलक्खा अंकमया मंडला अणोघसियणिम्मलासाए छायाए सव्वओ चेव समणुबद्धा चंदमंडलपडिणिगासा महया महया अद्धकायसमाणा पण्णत्ता समणाउसो!॥ कठिन शब्दार्थ - भिंगारगा - भुंगारक (झारी), मत्तगयमुहागिइसमाणा - मदोन्मत्त हाथी के मुख की आकृति वाले, आयंसगा - आदर्शक (दर्पण), छरुहा (थंभया)- स्तंभ-जहा से दर्पण मुट्ठी में पकड़ा जाता है, वरंगा - वरांग (गण्ड-फ्रेम), वलक्खा - वलक्ष-सांकल रूप अवलम्बन, मंडला - मंडल-जहां प्रतिबिम्ब पड़ता है, अणोघसियणिम्मलासाए छायाए - अनवघर्षित-बिना मांजे ही स्वाभाविक और निर्मल छाया, चंदमंडलपडिणिगासा-चन्द्र मंडल की तरह गोलाकार, अद्धकायसमाणाआधी काया के समान।। ___ भावार्थ - उन तोरणों के आगे दो दो भंगारक कहे गये हैं। वे भुंगारक श्रेष्ठ कमलों पर प्रतिष्ठित हैं यावत् सर्वरत्नमय स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं। हे आयुष्मन् श्रमण! वे श्रृंगारक बड़े बड़े और मस्त हाथी के मुख की आकृति वाले हैं। उन तोरणों के आगे दो दो आदर्शक (दर्पण) कहे गये हैं। उन आदर्शकों का वर्णन इस प्रकार हैं-उन आदर्शकों के प्रकण्ठक तपनीय स्वर्ण के बने हुए, इनके स्तभ वैडूर्य रत्न के, इनके वरांग वज्ररत्न के बने हुए हैं। इनके वलक्ष नानामणियों के हैं और इनके मण्डल अंक रत्न के हैं। ये दर्पण बिना मांजे ही स्वाभाविक और निर्मल कांति से युक्त चन्द्रमण्डल की तरह गोलाकार हैं। हे आयुष्मन् श्रमण! ये दर्पण बड़े बड़े और दर्शक की आधी काया के प्रमाण वाले कहे गये हैं। तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो वइरणाभे थाले पण्णत्ते, ते णं थाला अच्छतिच्छडियसालितंदुलणहसंदट्ठबहुपडिपुण्णा चेव चिटुंति सव्वजंबूणयामया अच्छा जाव पडिरूवा महया महया रहचक्कसमाणा पण्णत्ता समणाउसो!॥ तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो पाईओ पण्णत्ताओ, ताओ णं पाईओ अच्छोदयपडिहत्थाओ णाणाविहपंचवण्णस्स फलहरियगस्स बहुपडिपुण्णाओ विव चिटुंति सव्वरयणामईओ जाव पडिरूवाओ महया महया गोकलिंजगचक्कसमाणाओ पण्णत्ताओ समणाउसो!॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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