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सर्व जीवाभिगम-सर्व जीव दसविध वक्तव्यता
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कयरे २....? गोयमा! सव्वत्थोवा पंचेंदिया चउरिदिया विसेसाहिया तेइंदिया विसेसाहिया बेंदिया विसेसाहिया तेउकाइया असंखेजगुणा पुढविकाइया विसेसाहिया आउकाइया विसेसाहिया वाउकाइया विसेसाहिया अणिंदिया अणंतगुणा वणस्सइकाइया अणंतगुणा॥ २७१॥
भावार्थ - जो ऐसा प्रतिपादित करते हैं कि सर्व जीव दस प्रकार के हैं उनके अनुसार दस भेद इस प्रकार हैं - पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अनिन्द्रिय।
प्रश्न - हे भगवन्! पृथ्वीकायिक, पृथ्वीकायिक रूप में कितने काल तक रहता है ?
उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक, पृथ्वीकायिक रूप में जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यातकालअसंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी रूप, क्षेत्र की अपेक्षा असंख्यात लोक। इसी प्रकार अपकायिक तेजस्कायिक, वायुकायिक की कायस्थिति समझ लेनी चाहिये।
प्रश्न - हे भगवन्! वनस्पतिकायिक, वनस्पतिकायिक रूप में कितने काल तक रहता है ? . उत्तर - हे गौतम! वनस्पतिकायिक की संचिट्ठणा जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। . प्रश्न - हे भगवन्! बेइन्द्रिय, बेइन्द्रिय रूप में कितने काल. तक रहता है ?
उत्तर - हे गौतम! बेइन्द्रिय, बेइन्द्रिय रूप में जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात काल तक रहता है। इसी प्रकार तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय की कायस्थिति भी समझ लेनी चाहिये। ... प्रश्न - हे भगवन्! पंचेन्द्रिय पंचेन्द्रिय रूप में कितने काल तक रह सकता है ? ..... उत्तर - हे गौतम! जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक एक हजार सागरोपम तक रह सकता है।
प्रश्न- हे भगवन्! अनिन्द्रिय, अनिन्द्रिय रूप में कितने काल तक रहता है ? उत्तर - हे गौतम! अनिन्द्रिय-सादि अपर्यवसित होने से वह सदाकाल उसी रूप में रहता है। प्रश्न- हे भगवन! पथ्वीकायिक का अन्तर कितने काल का कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। इसी प्रकार अप्कायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक का भी अन्तर समझना चाहिये। वनस्पतिकायिक का अन्तर पृथ्वीकाय की कायस्थिति के समान अर्थात् जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यातकाल का है। इसी प्रकार बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय इन चारों का अन्तर जघन्य अतंर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का है।
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