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सर्व जीवाभिगम - सर्व जीव षड्विध वक्तव्यता
अन्तर पूर्वानुसार कह देना चाहिये । अल्पबहुत्व - सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय, उनसे चउरिन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे तेइन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे बेइन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अनिन्द्रिय अनंतगुणा और उनसे केन्द्रिय अनंतगुणा हैं ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में वर्णित छह प्रकार के सर्व जीवों (एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अनिन्द्रिय) की कायस्थिति, अन्तर पूर्व कथनानुसार समझ लेना चाहिए । अल्पबहुत्व भावार्थ से स्पष्ट है।
अहवा छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तंजहा - ओरालियसरीरी वेडव्वियसरीरीआहारगसरीरी तेयगसरीरी कम्मगसरीरी असरीरी ॥
ओरालियरीरी णं भंते!० कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं दुसमऊणं, उक्कोसेणं असंखेज्जं काल जाव अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, वेडव्वियसरीरी जहणणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, आहारगसरीरी जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं, तेयंगसरीरी दुविहे पण्णेत्ते, तंजहा - अणाइए वा अपज्जवसिए अणाइए वा सपज्जवसिए, एवं कम्मगसरीरीवि, असरीरी साइए अपज्जवसिए ॥ अंतरं ओरालियसरीरस्स जहण्णेणं एक्क समयं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्धहियाइं, वेडव्वियसरीरस्स जहणणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अणंतं कालं वणस्सइकालो, आहारगसरीरस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव अवडुं पोग्गलपरियट्टं देसूणं, तेयगसरीरस्स कम्मगसरीरस्स य दुण्हवि णत्थि अंतरं ॥ अप्पाबहुयं सव्वत्थोवा आहारगसरीरी वेडव्वियसरीरी असंखेज्जगुणा ओरालियसरीरी असंखेज्जगुणा असरीरी अनंतगुणा तेयाकम्मगसरीरी दोवि तुल्ला अनंतगुणा ॥ सेत्तं छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता ॥ २६४ ॥ औदारिक शरीरी,
भावार्थ - अथवा सर्व जीव छह प्रकार के कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं वैक्रिय शरीरी, आहारक शरीरी, तैजस शरीरी, कार्मण शरीरी और अशरीरी ।
प्रश्न - हे भगवन् ! औदारिक शरीरी, औदारिक शरीरी रूप में कितने काल तक रहता है ? उत्तर - हे गौतम! औदारिक शरीरी लगातार जघन्य से दो समय कम क्षुल्लक भव ग्रहण और • उत्कृष्ट से असंख्यातकाल तक रहता है। असंख्यातकाल अर्थात् अंगुल के असंख्यातवें भाग । वैक्रिय शरीरी जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम तक रहता है। आहारक शरीरी
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