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________________ ३७८ जीवाजीवाभिगम सूत्र सर्वजीव षड्विध वक्तव्यता तत्थ णं जे ते एवमाहंसु-छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एंवमाहंसु, तंजहाआभिणिबोहियणाणी सुयणाणी ओहिणाणी मणपजवणाणी केवलणाणी अण्णाणी। __ आभिणिबोहियणाणी णं भंते! आभिणिबोहियणाणित्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं छावढेि सागरोवमाइं साइरेगाइं, एवं सुयणाणीवि, ओहिणाणी णं भंते!०? गोयमा! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं छावहिँ सागरोवमाइं साइरेगाई, मणपज्जवणाणी णं भंते!०? गोयमा! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी, केवलणाणी णं भंते!०? गोयमा! साइए अपज्जवसिए, अण्णाणिणो तिविहा पण्णत्ता, तंजहा-अणाइए वा अपज्जवसिए अणाइए वा सपज्जवसिए साइए वा सपज्जवसिए, तत्थ० साइए सपज्जवसिए से जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अणंतं कालं अवडं पुग्गलपरियट्टू देसूणं। अंतरं आभिणिबोहियणाणिस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अणंतं कालं अवडं पुग्गलपरियट्टे देसूणं, एवं सुय० अंतरं० मणपज्जव०, केवलणाणिणो णस्थि अंतरं, अण्णाणि० साइयसपजवसियस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं छावढेि सागरोवमाइं साइरोगाई। अप्पाबहुयं सव्वत्थोवा मणपज्जवणाणिणो ओहिणाणिणो असंखेजगणा आभिणिबोहियणाणिणो सुयणाणिणो विसेसाहिया सट्टाणे दोवि तुल्ला केवलणाणिणो अणंतगुणा अण्णाणी अणंतगुणा॥ भावार्थ - जो ऐसा प्रतिपादित करते हैं कि सर्व जीव छह प्रकार के कहे गये हैं। उनके अनुसार छह भेद इस प्रकार हैं - १. आभिनिबोधिकज्ञानी २. श्रुतज्ञानी ३. अवधिज्ञानी ४. मनःपर्यवज्ञानी ५. केवलज्ञानी और ६. अज्ञानी। प्रश्न - हे भगवन्! आभिनिबोधिक ज्ञानी, आभिनिबोधिक ज्ञानी रूप में कितने काल तक रह सकता है? उत्तर - हे गौतम! आभिनिबोधिक ज्ञानी आभिमिबोधिक ज्ञानी रूप में जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक छियासठ सागरोपम तक रह सकता है। इसी प्रकार श्रुतज्ञानी के विषय में भी समझना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org|
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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