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जीवाजीवाभिगम सूत्र
देसूणं, मिच्छादिट्ठिस्स अणाइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, अणाइयस्स सपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, साइयस्स सपज्जवसियस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोवमाइं साइरेगाइं, सम्मामिच्छादिट्ठिस्स जहणणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव अवडुं पोग्गलपरियट्टं देसूणं । अप्पाबहुयं सव्वत्थोवा सम्मामिच्छादिट्ठी सम्मदिट्ठी अनंतगुणा मिच्छादिट्ठी अणंतगुणा ॥ २५० ॥
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भावार्थ - सम्यग्दृष्टि के अन्तर में सादि अपर्यवसित का अन्तर नहीं है। सादि सपर्यवसित का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल है यावत् देशोन अपार्द्ध पुद्गल परावर्त है । मिथ्यादृष्टि में अनादि अपर्यवसित और अनादि सपर्यवसित का अन्तर नहीं है। सादि सपर्यवसित मिथ्यादृष्टि का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक छियासठ सागरोपम है। सम्यग् मिथ्यादृष्टि का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल है जो देशोन अपार्द्ध पुद्गल परावर्त रूप है।
अल्प बहुत्व में सबसे थोड़े सम्यग् मिथ्यादृष्टि हैं, उनसे सम्यग्दृष्टि अनन्तगुणा हैं और उनसे मिथ्यादृष्टि अनंतगुणा हैं ।
विवेचन - अंतरद्वार में सादि अपर्यवसित सम्यग्दृष्टि का अन्तर नहीं है। सादि सपर्यवसित सम्यग्दृष्टि का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त है क्योंकि सम्यग्दर्शन से गिर कर कोई जीव अंतर्मुहूर्त में पुन: सम्यग्दर्शन पा लेता है उत्कृष्ट अंतर अनंतकाल अर्थात् देशोन अपार्द्ध पुद्गल परावर्त है अनादि अपर्यवसित मिथ्यादृष्टि का अन्तर नहीं हैं क्योंकि उसका मिथ्यात्व छूटता ही नहीं है। अनादि सपर्यवसित मिथ्यादृष्टि का भी अन्तर नहीं है। क्योंकि छूट कर पुनः होने में अनादित्व नहीं रहता । सादि सपर्यवसित मिथ्यादृष्टि का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त्त उत्कृष्ट साधिक छियासठ सागरोपम है क्योंकि सम्यक्त्व का जघन्य उत्कृष्ट काल इतना ही है। जितना सम्यक्त्व का काल है उतना मिथ्यात्व का अन्तर है। सम्यग्-मिथ्यादृष्टि का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त्त है क्योंकि सम्यग्मिथ्यादृष्टि से गिर कर कोई अंतर्मुहूर्त्त में पुनः सम्यग् - मिथ्यादृष्टि बन जाता है । उत्कृष्ट देशोन अपार्द्ध पुद्गल परावर्त का अन्तर है क्योंकि यदि सम्यग् - मिथ्यादृष्टि से गिर कर पुनः सम्यग् - मिथ्यादृष्टि का लाभ हो तो नियमा उत्कृष्ट इतने काल के बाद ही होता है, अन्यथा मोक्ष हो जाता है ।
अल्प बहुत्व में सबसे थोड़े मिश्रदृष्टि (सम्यग् - मिथ्यादृष्टि ) हैं क्योंकि तद्योग्य परिणाम थोड़े काल तक ही रहता है और पृच्छा के समय वे थोड़े ही होते हैं। उनसे सम्यग्दृष्टि अनंतगुणा हैं क्योंकि सिद्ध जीव अनंत । उनसे मिथ्यादृष्टि अनंतगुणा हैं क्योंकि सिद्धों से भी वनस्पतिकाय के जीव अनंतगुणा हैं और वे मिथ्यादृष्टि हैं ।
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