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________________ नवम प्रतिपत्ति ३४१ जघन्य अन्तर क्षुल्लक भव पर्यन्त अन्यत्र रह कर पुनः बेइन्द्रिय में उत्पन्न होने का प्रथम समय व्यतीत हो जाने पर होता है। उत्कृष्ट अंतर वनस्पतिकाल-अनन्तकाल का है। यह उत्कृष्ट अन्तर बेइन्द्रिय से निकल कर इतने काल तक वनस्पति में रह कर पुन: बेइन्द्रिय रूप में उत्पन्न होने के प्रथम समय व्यतीत हो जाने पर होता है। इसी तरह अप्रथम समय तेइन्द्रिय, अप्रथमसमय चउरिन्द्रिय और अप्रथम समय पंचेन्द्रिय का अंतर जघन्य समय अधिक क्षुल्लक भव और उत्कृष्ट अनंतकाल का समझ लेना चाहिए। पढमसमइयाणं सव्वेसिं सव्वत्थोवा पढमसमयपंचेंदिया पढमसमय चउरिंदिया विसेसाहिया पढमसमय तेइंदिया विसेसाहिया पढमसमय बेइंदिया विसेसाहिया पढमसमय एगिंदिया विसेसाहिया॥ एवं अपढमसमइयावि णवरि अपढमसमयएगिंदिया अणंतगुणा दोण्हं अप्पबहू, सव्वत्थोवा पढमसमयएगिंदिया अपढमसमयएगिंदिया अणंतगुणा सेसाणं सव्वत्थोवा पढमसमइया अपढमसमइया असंखेज्जगणा॥ ____ भावार्थ - प्रथम समय वालों में सबसे थोड़े प्रथम समय पंचेन्द्रिय हैं, उनसे प्रथम समय चउरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं उनसे प्रथम समय तेइन्द्रिय विशेषाधिक हैं उनसे प्रथम समय बेइन्द्रिय विशेषाधिक हैं और उनसे प्रथम समय एकेन्द्रिय विशेषाधिक हैं। इसी प्रकार अप्रथम समय वालों का अल्पबहुत्व भी समझ लेना चाहिये। विशेषता यह है कि अप्रथम समय एकेन्द्रिय अनन्तगुणा हैं। दोनों का अल्पबहुत्व-सबसे थोड़े प्रथम समय एकेन्द्रिय, उनसे अप्रथम समय एकेन्द्रिय अनन्तगुणा हैं। शेष में सबसे थोड़े प्रथम समय वाले हैं और अप्रथम समय वाले असंख्यातगुणा हैं। - विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में पहला अल्पबहुत्व प्रथम समय वालों का, दूसरा अल्पबहुत्व अप्रथम समय वालों और तीसरा अल्प बहुत्व इन दोनों के शामिल का कहा गया है जो इस प्रकार है - - १. प्रथम अल्पबहुत्व - प्रथम समय वालों में सबसे थोड़े प्रथम समय पंचेन्द्रिय हैं क्योंकि वे एक समय में थोड़े ही उत्पन्न होते हैं, उनसे प्रथम समय चउरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं क्योंकि वे एक समय में प्रभूत उत्पन्न होते हैं। उनसे प्रथम समय तेइन्द्रिय विशेषाधिक हैं क्योंकि वे एक समय में प्रभूततर उत्पन्न होते हैं। उनसे प्रथम समय बेइन्द्रिय विशेषाधिक हैं क्योंकि वे एक समय में प्रभूततम उत्पन्न होते हैं। उनसे प्रथम समय एकेन्द्रिय विशेषाधिक हैं। २. द्वितीय अल्पबहुत्व - अप्रथम समय वालों में-सबसे थोड़े अप्रथम समय पंचेन्द्रिय, उनसे अप्रथम समय चउरिन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथम समय तेइन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमय बेइन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथम समय एकेन्द्रिय अनंतगुणा हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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