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________________ ३०४ जीवाजीवाभिगम सूत्र उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े पृथ्वीकायिक अपर्याप्तक, उनसे पृथ्वीकायिक पर्याप्तक संख्यातगुणा। इसी प्रकार सबसे थोड़े अपर्याप्तक, अपकायिक उनसे पर्याप्तक अप्कायिक संख्यात गुणा। इसी प्रकार वनस्पतिक कायिक तक कह देना चाहिये। त्रसकायिकों में सबसे थोड़े त्रसकायिक पर्याप्तक उनसे त्रसकायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणा हैं। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में पृथ्वीकायिक आदि के पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों का अलग-अलग अल्पबहुत्व कहा गया है। सबसे थोड़े पृथ्वीकायिक अपर्याप्तक हैं उनसे पृथ्वीकायिक पर्याप्तक संख्यातगुणा हैं क्योंकि पृथ्वीकायिकों में सूक्ष्म जीव बहुत हैं और सूक्ष्म जीवों में पर्याप्तक संख्यात गुणा है। इसी तरह अप्काय, तेउकाय, वायुकाय और वनस्पतिकायिक पर्याप्तकों. और अपर्याप्तकों का अलग-अलग अल्पबहुत्व कह देना चाहिये। त्रसकायिक पर्याप्तक सबसे थोड़े हैं क्योंकि ये प्रतर के अंगुल के संख्यातवें भाग खण्ड प्रमाण है, उनसे त्रसकायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणा है। एएसि णं भंते! पुढविकाइयाणं जाव तसकाइयाणं पंजत्तगअपजत्तगाण य कयरे कयरे हितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? . गोयमा! सव्वत्थोवा तसकाइया पजत्तगा, तसकाइया अपजत्तगा असंखेजगुणा, तेउक्काइया अपजत्तगा असंखेजगुणा, पुढविक्काइया आउक्काइया वाउक्काइया अपज्जत्तगाविसेसाहिया, तेउक्काइयापज्जत्तगासंखेजगुणा, पुढवि-आउ-वाउ-पजत्तगा विसेसाहिया, वणस्सइकाइयाअपजत्तगाअणंतगुणा, सकाइयाअपजत्तगाविसेसाहिया, वणस्सइकाइया पजत्तगा संखेजगुणा, सकाइया पजत्तगा विसेसाहिया॥ २२९॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन पृथ्वीकायिकों यावत् त्रसकायिकों के पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? . उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े त्रसकायिक पर्याप्तक, उनसे त्रसकायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणा, उनसे तेजस्कायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणा, पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, वायुकायिक अपर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे तेजस्कायिक पर्याप्तक संख्यातगुणा, उनसे पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, वायुकायिक पर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे वनस्पतिकायिक अपर्याप्तक अनंतगुणा, उनसे सकायिक अपर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे वनस्पतिकायिक पर्याप्तक संख्यातगुणा उनसे सकायिक पर्याप्तक विशेषाधिक हैं। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में छह कायिक जीवों के पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों का शामिल अल्पबहुत्व कहा गया है जो इस प्रकार है - सबसे थोड़े त्रसकायिक पर्याप्तक हैं क्योंकि ये प्रतर के अंगुल के संख्यातवें भाग खण्ड प्रमाण हैं उनसे त्रसकायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणा हैं। उनसे तेजस्कायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणा हैं क्योंकि वे असंख्यातवें लोकाकाश प्रदेश प्रमाण है। उनसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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