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________________ चउत्था पंचविहा पडिवत्ती पंचविधाख्या चतुर्थ प्रतिपत्ति तीसरी प्रतिपत्ति में चार प्रकार के संसार समापनक जीवों का वर्णन करने के बाद सूत्रकार इस चतुर्थ प्रतिपत्ति में पांच प्रकार के संसार समापन्नक जीवों का प्रतिपादन करते हैं, जिसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है - तत्थ णं जे ते एवमाहंसु-पंचविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तंजहा-एगिदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिदिया पंचिंदिया।से किं तं एगिंदिया? एगिंदिया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-पजत्तगा य अपजत्तगा य, एवं जाव पंचिंदिया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-पजत्तगा य अपजत्तगा य। - एगिदियस्स णं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं, बेइंदिय० जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बारस संवच्छराणि, एवं तेइंदियस्स एगूणपण्णं राइंदियाणं, चउरिदियस्स छम्मासा, पंचेंदियस्स जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं, अपज्जत्तएगिंदियस्स णं० केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहणणेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं एवं सव्वेसिपि अपजत्तगाणं जाव पंचेंदियाणं, पज्जत्तेगिंदियाणं जाव पंचिंदियाणं पुच्छा, गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई, एवं उक्कोसियावि ठिई अंतोमुहुत्तूणा सव्वेसिं पज्जत्ताणं कायव्वा॥ भावार्थ - जो इस प्रकार प्रतिपादन करते हैं कि संसार समापनक जीव पांच प्रकार के कहे गये हैं वे पांच भेद इस प्रकार हैं - १. एकेन्द्रिय २. बेइन्द्रिय ३. तेइन्द्रिय ४. चउरिन्द्रिय और ५. पंचेन्द्रिय। प्रश्न - हे भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! एकेन्द्रिय जीव दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा-पर्याप्तक और अपर्याप्तक। इसी प्रकार पंचेन्द्रिय तक सभी के दो दो भेद कहे गये हैं - पर्याप्तक और अपर्याप्तक। प्रश्न - हे भगवन् ! एकेन्द्रिय जीवों की कितने काल की स्थिति कही गई है? उत्तर - हे गौतम! एकेन्द्रिय जीवों की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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