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तृतीय प्रतिपत्ति - विमानों की मोटाई और ऊँचाई
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अन्य प्रतर तो घनवात प्रतिष्ठित हैं एवं तीसरा रिष्ट प्रतर तदुभय प्रतिष्ठित हैं। क्योंकि भगवती सूत्र में पांचवें देवलोक के प्रतरों के लिए वायु प्रतिष्ठित तथा तदुभय प्रतिष्ठित दोनों प्रकार बताए हैं अत: पहले घनवात फिर घनोदधि समझना चाहिए। नौवें देवलोक के आगे के देवलोकों को मात्र घनोदधि आदि का अभाव बताने के लिए ही आकाश प्रतिष्ठित बताया है अन्यथा तो सभी देवलोक आकाश प्रतिष्ठि ही हैं। जिस प्रकार बादल भी तथाविध पुद्गल परिणाम से आकाश में अधर रहते हैं ऐसे ही यहाँ भी समझना चाहिए। सिद्धशिला के लिए भी ऐसा ही समझना चाहिए।
विमानों की मोटाई और ऊँचाई ___ सोहम्मीसाणकप्पेसु० विमाणपुढवी केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ता? गोयमा! सत्तावीसं जोयणसयाइं बाहल्लेणं पण्णत्ता, एवं पुच्छा, सणंकुमारमाहिंदेसु छव्वीसं जोयणसयाइं। बंभलंतए पंचवीसं। महासुक्कसहस्सारेसु चउवीसं। आणयपाणयारणाच्चुएसु तेवीसं सयाई। गेविजविमाणपुढवी बावीसं। अणुत्तरविमाणपुढवी एक्कवीसं जोयणसयाई बाहल्लेणं प०॥॥२१०॥ . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सौधर्म और ईशान कल्प में विमान पृथवी का बाहल्य (मोटाई) कितना कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! सौधर्म और ईशान कल्प में विमान पृथ्वी दो हजार सात सौ में (२७००) योजन मोटाई वाली हैं। इसी प्रकार सब देवलोकों के विषय में प्रश्न कर लेना चाहिए। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में विमान पृथ्वी दो हजार छह सौ (२६००) योजन मोटी है। ब्रह्मलोक और लांतक में विमान पृथ्वी दो हजार पांच सौ (२५००) योजन मोटी, महाशुक्र और सहस्रार में दो हजार चार सौ (२४००) योजन मोटी तथा आत-प्राणत आरण और अच्युत कल्प में दो हजार तीन सौ (२३००) योज़न मोटी विमान पृथ्वी है। ग्रैवेयकों को दो हजार दो सौ (२२००) योजन मोटी विमान पृथ्वी है तथा अनुत्तर विमान में दो हजार एक सौ (२१००) योजन मोटी विमान पृथ्वी कही गई है।
सोहम्मीसाणेसुणं भंते! कप्पेसु विमाणा केवइयं उठें उच्चत्तेणं०?
गोयमा! पंच जोयणसयाई उड्डे उच्चत्तेणं प० । सणंकुमारमाहिदेसु छजोयणसयाई बंभलंतएसु सत्त, महासुक्कसहस्सारेसु अट्ठ, आणयपाणएसु ४, णव गेवेजविमाणा णं भंते! केवइयं उड् उ०? गोयमा! दस जोयणसयाई, अणुत्तरविमाणा णं० एक्कारस जोयणसयाइं उठें उच्चत्तेणं प०॥२११॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सौधर्म ईशान कल्प में विमान कितने ऊँचे कहे गये हैं ?
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