SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय प्रतिपत्ति - द्वितीय वैमानिक उद्देशक २६९ विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में वैमानिक देवों के विमानों का परिषदाओं के देव देवियों की संख्या और उनकी स्थिति का कथन किया गया है। ग्रैवेयक और अनुत्तर विमानों के देव अहमिन्द्र होने से उनमें परिषदाएं नहीं हैं। कौन से देवलोक में कितने विमानावास हैं, इसके लिए टीकाकार ने निम्न संग्रहणी गाथाएं दी हैं - बत्तीस अट्ठावीसा बारस अट्ट चउरो सयसहस्सा। पन्ना चत्तालीसा छच्च सहस्सा सहस्सारे॥१॥ आणय पाणय कप्पे चत्तारि सया आरण अच्चुए तिण्णिा सत्त विमाणसयाई चउसु वि एसुकप्पेसु॥२॥ अर्थ - सौधर्म कल्प में ३२ लाख, ईशान में २८ लाख, सनत्कुमार में १२ लाख, माहेन्द्र में ८ लाख, ब्रह्मलोक में ४ लाख, लान्तक में ५०,०००, महाशुक्र में ४० हजार, सहस्रार में ६ हजार, आनत प्राणत में ४००, आरण अच्युत में ३०० विमानावास हैं। नवग्रैवेयक में ३१८ (प्रथमत्रिक में १११ द्वितीय त्रिक में १०७ और तृतीय त्रिक में २००) विमानावास हैं तथा अनुत्तर विमान में ५ विमानावास हैं। इस तरह वैमानिक देवों के कुल मिलाकर चौरासी लाख सत्तानवें हजार तेइस (८४,९७,०२३) विमानावास हैं। इसी तरह सामानिक देवों की संख्या के लिए निम्न संग्रहणी गाथा दी गई है - चउरासीइ.असीइ बावत्तरी सत्तरिय सट्ठी यो पण्णा चत्तालीसा तीसा वीसा दस सहस्सा॥१॥ अर्थ - सौधर्म देवलोक में ८४ हजार सामानिक देव, ईशान देवलोक में ८०००० सनत्कुमार में ७२०००, माहेन्द्र में ७०,०००, ब्रह्मलोक में ६०,००० लान्तक में ५०,००० महाशुक्र में ४०,००० सहस्रार में ३०,००० आनत प्राणत में २०,००० आरण अच्युत में १०००० सामानिक देव हैं। ॥प्रथम वैमानिक उद्देशक समाप्त॥ बीओ वेमाणिय उद्देसो द्वितीय वैमानिक उद्देशक - सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु विमाणपुढवी किंपइट्ठिया पण्णता? गोयमा! घणोदहिपइट्ठिया प०।सणंकुमारमाहिदेसु० कप्पेसु विमाणपुढवी किंपइट्ठिया पण्णत्ता? गोयमा! घणवायपइट्ठिया पण्णत्ता। बंभलोए णं भंते! कप्पे विमाणपुढवीणं पुच्छा, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy