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तृतीय प्रतिपत्ति - प्रथम वैमानिक उद्देशक
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बारह सागरोपम और सात पल्योपम की, मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति बारह सागरोपम और छह पल्योपम की, बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति बारह सागरोपम और पांच पल्योपम की है।
महासुक्कस्सवि जाव तओ परिसाओ जाव अब्भिंतरियाए एग देवसहस्सं मज्झिमियाए दो देवसाहस्सीओ' पण्णत्ताओ बाहिरियाए चत्तारि देवसाहस्सीओ, अबिभंतरियाए परिसाए अद्धसोलस सागरोवमाइं पंच पलिओवमाइं, मज्झिमियाए अद्धसोलस सागरोवमाइं चत्तारि पलिओवमाई, बाहिरियाए अद्धसोलस सागरोवमाई तिणि पलिओवमाई, अट्ठो सो चेव॥
भावार्थ - महाशुक्र इन्द्र की भी तीन परिषदाएं हैं यावत् आभ्यंतर परिषद् में एक हजार देव, मध्यम परिषद् में दो हजार देव और बाह्य परिषद् में चार हजार देव हैं। आभ्यंतर परिषद् के देवों की स्थिति साढे पन्द्रह सागरोपम और पांच पल्योपम की, मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति साढे पन्द्रह सागरोपम और चार पल्योपम की तथा बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति साढे पन्द्रह सागरोपम और तीन पल्योपम की है। परिषदों का अर्थ पूर्वानुसार है।
सहस्सारे पुच्छा जाव अब्भिंतरियाए परिसाए पंच देवसया, मज्झिमियाए परि० एगा देवसाहस्सी, बाहिरियाए० दो देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, ठिई-अब्भिंतरियाए० अट्ठारस सागरोवमाइं सत्त पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता एवं मज्झिमियाए अद्धट्ठारस सागरोवमाइं छप्पलिओवमाइं बाहिरियाए अद्धट्ठारस सागरोवमाइं पंच पलिओवमाई, अट्ठो सो चेव॥ .
. भावार्थ - सहस्रार इन्द्र विषयक पृच्छा यावत् आभ्यंतर परिषद् में पांच सौ देव, मध्यम परिषद् में एक हजार देव और बाह्य परिषद् में दो हजार देव हैं। आभ्यंतर परिषद् के देवों की स्थिति साढे सतरह सागरोपम और सात पल्योपम की, मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति साढे सतरह सागरोपम और छह पल्योपम की तथा बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति साढे सतरह सागरोपम और पांच पल्योपम की है।
आणयपाणयस्सवि पुच्छा जाव तओ परिसाओ णवरि अब्भिंतरियाए अड्डाइज्जा देवसया मज्झिमियाए पंच देवसया बाहिरियाए एगा देवसाहस्सी, ठिई-अभिंतरियाए। एगूणवीसं सागरोवमाइं पंच य पलिओवमाइं एवं मज्झि० एगूणवीसं सागरोवमाइं चत्तारि य पलिओवमाई बाहिरियाए परिसाए एगूणवीसं सागरोवमाइं तिण्णि य पलिओवमाइं ठिई, अट्ठो सो चेव॥
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