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जीवाजीवाभिगम सूत्र
दो देवा महिड्डिया०। सयंभूरमणण्णं दीवं सयंभूरमणोदे णामं समुद्दे वट्टे वलया० जाव असंखेज्जाई जोयणसयसहस्साई परिक्खेवेणं जाव अट्ठो, गोयमा! सयंभूरमणोदए उदए अच्छे पत्थे जच्चे तणुए फलिहवण्णाभे पगईए उदगरसेणं पण्णत्ते, सयंभूरमणवरसयंभूरमणमहावरा एत्थ दो देवा महिड्डिया सेसं तहेव जाव असंखेज़ाओ तारागणकोडिकोडीओ सोभेसु वा ३॥१८५॥
भावार्थ - देवद्वीप नामक द्वीप में देवभद्र और देवमहाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। देवोद समुद्र में दो महर्द्धिक देव हैं - देववर और देवमहावर यावत् स्वयंभूरमण द्वीप में दो महर्द्धिक देव हैं- स्वयंभूरमणभद्र और स्वयंभूरमणमहाभद्र।
स्वयंभूरमण द्वीप को गोल और वलयाकार संस्थान वाला स्वयंभूरमण समुद्र चारों ओर से घेर कर रहा हुआ है यावत् असंख्यात लाख योजन की उसकी परिधि है यावत् वह स्वयंभूरमण समुद्र क्यों कहा जाता है?
उत्तर - हे गौतम! स्वयंभूरमण समुद्र का पानी स्वच्छ है, पथ्य है, निर्मल है, हल्का है, स्फटिक मणि की कांति जैसा है और स्वाभाविक जल के रस से परिपूर्ण है। यहां स्वयंभूरमणवर और स्वयंभूरमणमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। शेष सारा वर्णन पूर्वानुसार समझ लेना चाहिये यावत् वहां असंख्यात कोटाकोटि तारे शोभित हुए थे, शोभित होते हैं और शोभित होंगे।
विवेचन - सबसे पहले जंबूद्वीप नामक द्वीप है उसको चारों ओर से घेरे हुए लवण समुद्र है। इस तरह एक द्वीप एक समुद्र है। इसी प्रकार असंख्यात द्वीप और असंख्यात समुद्र एक दूसरे को घेरे हुए हैं। सबसे अंत में स्वयंभूरमण द्वीप है और उसको चारों ओर से घेरे हुए स्वयंभूरमण समुद्र है।
जंबूद्वीप आदि नाम वाले द्वीपों की संख्या केवइया णं भंते! जंबुद्दीवा दीवा णामधेजेहिं पण्णत्ता? गोयमा! असंखेजा जंबुद्दीवा दीवा णामधेजेहिं पण्णत्ता, केवइया णं भंते! लवणसमुद्दा समुद्दा णामधेजेहिं पण्णत्ता?
गोयमा! असंखेजा लवणसमुद्दा णामधेजेहिं पण्णत्ता, एवं धायइसंडावि, एवं जाव असंखेजा सूरदीवा णामधेजेहिं०। एगे देव दीवे पण्णत्ते एगे देवोदे समुद्दे पण्णत्ते, एवं णागे जक्खे भूए जाव एगे सयंभूरमणे दीवे एगे सयंभूरमणसमुद्दे णामधेजेणं पण्णत्ते ॥१८६॥
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