SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३० जीवाजीवाभिगम सूत्र wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww.kkkkkkkkkkkkkkkkkkk...... रुयगोदण्णं समुदं रुयगवरे णं दीवे वट्टे० रुयगवरभद्दरुयगवरमहाभद्दा एत्थ दो देवा० रुयगवरोदे स० रुयगवररुयगवरमहावरा एत्थ दो देवा महिड्डिया०। रुयगवरावभासे दीवे रुयगवरावभासभहरुयगवरावभासमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्डिया०।रुयगवरावभासे समुद्दे रुयगवरावभासवररुयगवरावभासमहावरा एत्थ०॥ भावार्थ - कुण्डलवराभास समुद्र को चारों ओर से घेर कर रुचक नामक द्वीप स्थित है। जो गोल और वलयाकार है। प्रश्न - हे भगवन् ! वह रुचकद्वीप समचक्रवाल विष्कम्भ वाला है या विषम चक्रवाल विष्कंभ वाला है? उत्तर - हे गौतम! वह रुचकद्वीप समचक्रवाल संस्थान से संस्थित है विषम चक्रवाल संस्थान से संस्थित नहीं। हे भगवन् ! उसका चक्रवाल विष्कंभ कितना है? आदि सारा वर्णन पूर्वानुसार समझना चाहिये यावत् वहां सर्वार्थ और मनोरम नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। शेष सारा वर्णन पूर्ववत् । रुचकोदक नामक समुद्र क्षोदोद समुद्र की तरह संख्यात लाख योजन चक्रवाल विष्कंभ वाला, संख्यात लाख योजन की परिधि वाला, द्वार और द्वारान्तर भी संख्यात लाख योजन वाले हैं। वहां . ज्योतिषियों की संख्या भी संख्यात कहनी चाहिये। क्षोदोद समुद्र की तरह अर्थ आदि को वर्णन कह देना चाहिये। विशेषता यह है कि यहां सुमन और सौमनस नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। शेष सारा वर्णन पूर्वानुसार समझ लेना चाहिये। ___ रुचकद्वीप के आगे के सब द्वीप समुद्रों का विष्कंभ, परिधि, द्वार, द्वारान्तर, ज्योतिषियों की संख्या आदि सभी असंख्यात कहने चाहिये। रुचकोद समुद्र को चारों ओर से घेर कर रुचकवर नाम का द्वीप स्थित है जो गोल और वलयाकार है यावत् वहां रुचकवरभद्र और रुचकवरमहाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। रुचकवरोद समुद्र में रुचकवर और रुचकमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। रुचकवरावभासद्वीप में रुचकवरावभासभद्र और रुचकवरावभास महाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। रुचकवरावभास समुद्र में रुचकवरावभासवर और रुचकवरावभासमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं आदि वर्णन समझना चाहिये। विवेचन - यहां रुचक समुद्र के आगे के द्वीप समुद्रों की परिधि, द्वारों का अन्तर, ज्योतिषियों की संख्या आदि असंख्य बताई हैं। वह इस प्रकार समझना चाहिए - जैसे आगमों में एक करोड़ पूर्व से एक समय भी अधिक आयु वाले संज्ञी मनुष्यों एवं संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रियों को असंख्य वर्षायुष्क बताया गया है वैसे ही यहां भी असंख्य का सांकेतिक अर्थ समझना चाहिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy