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________________ २२८ जीवाजीवाभिगम सूत्र प्रश्न - हे भगवन्! अरुणद्वीप समचक्रवाल विष्कम्भ वाला है या विषम चक्रवाल संस्थान संस्थित है? उत्तर - हे गौतम! अरुणद्वीप समचक्रवाल विष्कम्भ वाला है विषम चक्रवाल विष्कम्भ वाला नहीं है। प्रश्न - हे भगवन् ! उसका चक्रवाल विष्कम्भ कितना कहा गया है? उत्तर - हे गौतम! अरुणद्वीप का चक्रवाल विष्कम्भ संख्यात लाख योजन का है और संख्यात लाख योजन की उसकी परिधि है। पद्मवरवेदिका, वनखण्ड, द्वार, द्वारों का अंतर भी संख्यात लाख योजन प्रमाण है। यहां पर बावड़ियां इक्षुरस जैसे पानी से भरी हुई है। इसमें उत्पात पर्वत हैं जो वज्रमय हैं, स्वच्छ हैं। यहां अशोक और वीतशोक नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं इस कारण इसका नाम अरुणद्वीप है। यहां ज्योतिषियों की संख्या संख्यात-संख्यात है। ____अरुणण्णं दीवं अरुणोदे णामं समुद्दे तस्सवि तहेव परिक्खेवो अट्ठो खोदोदगे णवरं सुभद्दसुमणभद्दा एत्थ दो देवा महिड्डिया सेसं तहेव॥ अरुणोदगं णं समुदं अरुणवरे णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाण० तहेव संखेजगं सव्वं जाव. अट्ठो खोदोदगपडिहत्थाओ उप्पायपव्वयया सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा, अरुणवरभद्दअरुणवरमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्डिया० एवं अरुणवरोदेवि समुद्दे जाव अरुणवरअरुणमहावरा य एत्थ दो देवा सेसं तहेव॥ , भावार्थ - अरुणद्वीप को चारों ओर से घेर कर अरुणोद नाम का समुद्र स्थित है उसका विष्कम्भ, परिधि, अर्थ, इक्षुरस जैसा पानी आदि सारा वर्णन पूर्वानुसार समझ लेना चाहिये। विशेषता यह है कि यहां सुभद्र और सुमनभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं शेष सारा वर्णन पूर्वानुसार कह देना चाहिये। __अरुणोद समुद्र को अरुणवर नामक द्वीप चारों ओर से घेर कर रहा हुआ है। वह गोल और वलयाकार संस्थान वाला है यावत् वहां अरुणवरभद्र और अरुणवर महाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। इत्यादि सारी वक्तव्यता कह देनी चाहिये। इसी प्रकार अरुणवरोद नामक समुद्र का वर्णन भी समझना चाहिये यावत् वहां अरुणवर और अरुणमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। शेष सारा वर्णन पूर्ववत् समझ लेना चाहिये। अरुणवरोदण्णं समुहं अरुणवरावभासे णामं दीवे वट्टे जाव अरुणवरावभासभद्दारुणवरावभासमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्डिया०। एवं अरुणवरावभासे समुद्दे णवरि अरुणवरावभासवरारुणवरावभासमहावरा एत्थ दो देवा महिड्डिया०॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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