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________________ तृतीय प्रतिपत्ति - कालोदधि समुद्र का वर्णन गोयमा! बारस चंदा पभासिंसु वा ३, एवंचडवीसं ससिरविणो णक्खत्त सया य तिण्णि छत्तीसा । एगं च गहसहस्सं छप्पण्णं धायईसंडे ॥ १ ॥ अद्वेव सयसहस्सा तिण्णि सहस्साइं सत्त य सयाई । धायइसंडे दीवे तारागणकोडिकोडीणे ॥ २ ॥ सोभेंसु वा ३ ॥ १७४॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! धातकीखण्ड द्वीप में कितने चन्द्र प्रभासित हुए, होते हैं और होंगे? कितने सूर्य तपित होते थे, होते हैं और होंगे ? कितने महाग्रह चलते थे, चलते हैं, चलेंगे ? कितने नक्षत्र चन्द्रादि से योग करते थे, करते हैं और करेंगे ? और कितने कोडाकोडी तारागण शोभित होते थे, होते हैं और होंगे ? उत्तर - हे गौतम! धातकीखण्ड द्वीप में बारह चन्द्र उद्योत करते थे, करते हैं और करेंगे। बारह सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे। तीन सौ छत्तीस नक्षत्र चन्द्र सूर्य से योग करते थे, करते हैं और करेंगे। एक हजार छप्पन महाग्रह चलते थे, चलते हैं और चलेंगे। आठ लाख तीन हजार सात सौ कोडाकोड़ी तारागण शोभित होते थे, होते हैं और होंगे। १८७ विवेचन - एक चन्द्र-सूर्य के परिवार में २८ नक्षत्र, ८८ महाग्रह और ६६९७५ कोडाकोडी तारे ` होते हैं । धातकीखण्ड में १२ चन्द्र और १२ सूर्य हैं। अतः उक्त संख्या को १२ से गुणा करने पर धातकीखण्ड में कुल (२८x१२ = ३३६) तीन सौ छत्तीस नक्षत्र, एक हजार छप्पन (८८x१२ = १०५६) महाग्रह और आठ लाख तीन हजार सात सौ (६६९७५×१२ - ८०३७००) कोडाकोडी तारे हैं। कालोदधि समुद्र का वर्णन धायइसंडं णं दीवं कालोए णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइं, कालोए णं समुद्दे किं समचक्कवालसंठाणसंठिए विसम० ? गोयमा ! समचक्कवाल संठाणसंठिए णो विसमचक्कवालसंठाणसंठिए ॥ कालोए णं भंते! समुद्दे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा! अट्ठ जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं एक्काणउइजोयणसयसहस्साइं सत्तरि सहस्साइं छच्च पंचुत्तरे जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते ॥ से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेणं वणसंडेणं० दोण्हवि वण्णओ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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