________________
तृतीय प्रतिपत्ति - अनुवेलंधर नागराज देवों का वर्णन
णामं आवासपव्वए पण्णत्ते सत्तरस एक्कवीसाइं जोयणसयाइं तं चेव पमाणं जं गोथूभस्स णवरि सव्वरयणामए अच्छे जाव णिरवसेसं जाव सीहासणं सपरिवारं अट्ठो से बहूइं उप्पलाइं० कक्कोडगप्पभाई सेसं तं चेव णवरि कक्कोडगपव्वयस्स उत्तरपुरच्छिमेणं, एवं तं चेव सव्वं, कद्दमस्सवि सो चेव गमओ अपरिसेसिओ, णवरि दाहिणपुरच्छिमेणं आवासो विज्जुप्पभा रायहाणी दाहिणपुरस्थिमेणं, कइलासेवि एवं चेव, णवरि दाहिणपच्चत्थिमेणं कइलासावि रायहाणी ताए चेव दिसाए, अरुणप्पभेवि उत्तरपच्चत्थिमेणं रायहाणीवि ताए चेव दिसाए, चत्तारि विगप्पमाणा सव्वरयणामया य॥१६०॥
भावार्थ - हे भगवन्! कर्कोटक अनुवेलंधर नागराज का कर्कोटक नामक आवास पर्वत कहां कहा गया है? ... हे गौतम! जंबूद्वीप के मेरु पर्वत के उत्तरपूर्व में लवण समुद्र में बयालीस हजार योजन आगे जाने पर कर्कोटक नागराज का कर्कोटक आवास पर्वत है जो सतरह सौ इक्कीस (१७२१) योजन ऊंचा है आदि वही प्रमाण कहना चाहिये जो गोस्तूप पर्वत का है। विशेषता यह है कि यह सर्वात्मना रत्नमय है स्वच्छ है यावत् सपरिवार सिंहासन का वर्णन पूर्ववत् समझना चाहिये। कर्कोटक नाम देने का कारण यह है कि कर्कोटक आवास पर्वत पर छोटी छोटी बावड़ियां है जिनमें कर्कोटक के आकार और वर्ण के उत्पल कमल आदि हैं अतः वह कर्कोटक कहा जाता है शेष सारा वर्णन पूर्वानुसार समझना चाहिये यावत् उसकी राजधानी कर्कोटक पर्वत के उत्तरपूर्व में तिरछे असंख्यात द्वीप समुद्र पार करने पर अन्य लवण समुद्र में है प्रमाण आदि पूवर्वत् कह देने चाहिये।
कर्दम आवास पर्वत का वर्णन भी पूर्वानुसार है। विशेषता यह है कि मेरु पर्वत के दक्षिण-पूर्व (आग्नेय कोण) में लवण समुद्र में ४२००० योजन आगे जाने पर कर्दम नामक आवास पर्वत है इसकी विद्युत्प्रभा नामक राजधानी कर्दम पर्वत से दक्षिण-पूर्व में असंख्यात द्वीप समुद्र पार करने पर अन्य लवण समुद्र में है आदि सारा वर्णन विजया राजधानी की तरह समझ लेना चाहिये।
कैलाश नामक आवास पर्वत के विषय में सारा वर्णन पूर्वानुसार है। विशेषता यह है कि यह मेरु पर्वत से दक्षिण पश्चिम (नैर्ऋत्य कोण) में है। इसकी कैलाशा नामक राजधानी, कैलाश पर्वत के दक्षिण पश्चिम में असंख्यात द्वीप समुद्र पार करने पर दूसरे लवण समुद्र में है।
अरुणप्रभ नामक आवास पर्वत मेरु पर्वत के उत्तर-पश्चिम (वायव्य कोण) में है। राजधानी इस आवास पर्वत के उत्तर पश्चिम में असंख्य द्वीप समुद्रों को पार करने पर अन्य लवण समुद्र में है। शेष सारा वर्णन विजया राजधानी की तरह है। ये चारों आवास पर्वत एक ही प्रमाण के हैं और सभी रत्नमय हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org