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तृतीय प्रतिपत्ति - जंबू वृक्ष का वर्णन
इसी प्रकार दक्षिण पश्चिम में भी पचास योजन आगे जाने पर चार पुष्करिणियां हैं वे इस प्रकार हैं- भृंगा, भृंगिनियां, अंजना एवं कज्जल प्रभा । शेष वर्णन पूर्वानुसार है ।
जंबू- सुदर्शना के उत्तर पूर्व में प्रथम वनखंड में पचास योजन आगे जाने पर चार नंदापुष्करिणियां हैं। वे इस प्रकार हैं- श्रीकांता, श्रीमहिता, श्रीचन्द्रा और श्रीनिलया। उनका परिमाण वही है । प्रासादावतंसक तथा उसका प्रमाण भी वही है ।
जंबूए णं सुदंसणाए पुरत्थिमिल्लस्स भवणस्स उत्तरेणं उत्तरपुरत्थिमेणं पासायवडेंसगस्स दाहिणेणं एत्थ णं एगे महं कूडे पण्णत्ते अट्ठ जोयणाइं उड्डुं उच्चत्तेणं मूले बारस जोयणाइं विक्खंभेणं मज्झे अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणं उवरिं चत्तारि जोयणाई आयामविक्खंभेणं मूले साइरेगाइं सत्ततीसं जोयणाइं परिक्खेवेणं मज्झे साइरेगाइं पणुवीसं जोयणाइं परिक्खेवेणं उवरि साइरेगाई बारस जोयणाइं परिक्खेवेणं मूले विच्छिण्णे मज्झे संखित्ते उप्पिं तणुए गोपुच्छसंठाणसंठिए सव्वजंबूणयामए अच्छे जाव पडिरूवे, से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेणं वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते दोण्हवि वण्णओ ॥
'भावार्थ - जंबू सुदर्शना के पूर्व दिशा के भवन के उत्तर में और उत्तरपूर्व के प्रासादावतंसक के दक्षिण में एक विशाल कूट कहा गया है जो आठ योजन ऊंचा, मूल में बारह योजन चौड़ा, मध्य में आठ योजन चौड़ा, ऊपर चार योजन चौड़ा, मूल में कुछ अधिक सैंतीस योजन की परिधि वाला, मध्य में कुछ अधिक पच्चीस योजन की परिधि वाला और ऊपर कुछ अधिक बारह योजन की परिधि वाला-मूल में विस्तृत, मध्य में संक्षिप्त और ऊपर पतला, गोपुच्छ आकार वाला है । सर्वात्मना जंबूनद स्वर्णमय; स्वच्छ यावत् प्रतिरूप है। वह कूट एक पद्मवरवेदिका और एक वनखंड से चारों ओर से घिरा हुआ है। पद्मवरवेदिका और वनखंड दोनों का वर्णन कह देना चाहिये ।
तस्स णं कूडस्स उवरिं बहुसमरमणिजे भूमिभागे पण्णत्ते जाव आसयंति० ॥ तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एगं सिद्धाययणं कोसप्पमाणं सव्वा सिद्धाययणवत्तव्वया ।
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जंबूए णं सुदंसणाए पुरत्थिमस्स भवणस्स दाहिणेणं दाहिणपुरत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स उत्तरेणं एत्थ णं एगे महं कूडे पण्णत्ते तं चेव पमाणं सिद्धाययणं
जंबूए णं सुदंसणाए दाहिणिल्लस्स भवणस्स पुरत्थिमेणं दाहिणपुरत्थिमस्स
च।
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