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________________ १३४ जीवाजीवाभिगम सूत्र यावत् वनमालाओं, भूमिभागों, ऊपरी छतों, पांच सौ धनुष की मणिपीठिका और देवशयनीय का वर्णन पूर्वानुसार कह देना चाहिये। ___ तत्थ णं जे से दाहिणिल्ले साले एत्थ णं एगे महं पासायवडेंसए पण्णत्ते, कोसं च उड्ढे उच्चत्तेणं अद्धकोसं आयामविक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसिय० अंतो बहुसम० उल्लोया। तस्स णं बहुसमरमणिजस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए सीहासणं सपरिवारं भाणियव्वं । तत्थ णं जे से पच्चथिमिल्ले साले एत्थ णं पासायवडेंसए पण्णत्ते तं चेव पमाणं सीहासणं सपरिवारं भाणियव्वं, तत्थ णं जे से उत्तरिल्ले साले एत्थ णं एगे महं पासायवडेंसए पण्णत्ते तं चेव पमाणं सीहासणं सपरिवारं तत्थ णं जे से उवरिमविडिमे एत्थ णं एगे महं सिद्धायतणे कोसं आयामेणं अद्धकोसं विक्खंभेणं देसूणं कोसं उड्ढे उच्चत्तेणं अणेगखंभसयसण्णिविटे वण्णओ तिदिसिं तओ दारा पंचधणुसया अड्डाइजधणुसयविक्खंभा मणिपेढिया पंचधणुसइया देवच्छंदओ पंचधणुसयविक्खंभो साइरेगपंचधणुसयउच्चत्ते। ___ तत्थ णं देवच्छंदए अट्ठसयं जिणपडिमाणं जिणुस्सेहप्पमाणाणं, एवं सव्वा सिद्धायतण वत्तव्वया भाणियव्वा जाव धूवकडुच्छुया उत्तिमागारा सोलसविहेहिं रयणेहिं उवेए चेव।जंबू णं सुदंसणा मूले बारसहिं पउमवरवेइयाहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता, ताओ णं पउमवरवेइयाओ अद्धजोयणं उर्दू उच्चत्तेणं पंचधणुसयाई विक्खंभेणं वण्णओ॥ भावार्थ - उस जंबू वृक्ष की दक्षिणी शाखा पर एक विशाल प्रासादावतंसक है जो एक कोस ऊंचा, आधा कोस लम्बा-चौड़ा है, आकाश को छुता हुआ और उन्नत है। उसमें बहुसमरमणीय भूमिभाग है, भीतरी छतें चित्रित है आदि वर्णन कहना चाहिये। उस बहुसमरमणीय भूमिभाग के मध्य में सिंहासन है, वह सिंहासन सपिरवार है अर्थात् उसके आसपास अन्य सामानिक देवों आदि के भद्रासन हैं। यह सारा वर्णन पूर्वानुसार समझ लेना चाहिये। उस जंबू वृक्ष की पश्चिमी शाखा पर एक विशाल प्रासादावतंसक है। उसका वही प्रमाण है और सारा वर्णन पूर्वानुसार कह देना चाहिये यावत् वहां सपरिवार सिंहासन कहा गया है। उस जंबू वृक्ष की उत्तरी शाखा पर भी एक विशाल प्रासादावतंसक है आदि सारा वर्णन, प्रमाण सपरिवार सिंहासन आदि का वर्णन पूर्वानुसार कह देना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004195
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2003
Total Pages422
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size9 MB
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