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प्रथम प्रतिपत्ति - तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों का वर्णन - स्थलचर के भेद
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उरपरिसप्पसंमुच्छिमा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा - अही अयगरा आसालिया महोरगा।
से किं तं अही? अही दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - दव्वीकरा, मउलिणो य। से किं तं दव्वीकरा? . . दव्वीकरा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा - आसीविसा ज़ाव से तं दव्वीकरा। से किं तं मउलिणो?
मउलिणो अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा - दिव्वा गोणसा जाव से तं मउलिणो, से तं अही।
. से किं तं अयगरा? अयगरा एगागारा पण्णत्ता, से तं अयगरा। से किं तं आसालिया? आसालिया जहा पण्णवणाए, से तं आसालिया। से किं तं महोरगा?
महोरगा जहा पण्णवणाए, से तं महोरगा। जे यावण्णे तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्ता य अपज्जत्ता य, तं चेव, णवरि सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं जोयणपुहुत्तं, ठिई जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तेवण्णं वाससहस्साइं, सेसं जहा जलयराणं जाव चउगइया दुआगइया परित्ता असंखेज्जा, से तं उरपरिसप्पा।
कठिन शब्दार्थ - अही - अहि (सर्प), अयगरा - अजगर, आसालिया - आसालिका, दव्वीकरा - दर्वीकर (फण वाले), मउलिणो - मुकुली (बिना फन वाले)।
भावार्थ - उर:परिसर्प सम्मूर्छिम कितने प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. अहि २. अजगर ३. आसालिका और ४. महोरग।
अहि कितने प्रकार के कहे गये हैं ? अहि दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - दर्वीकर (फण वाले) और मुकुली (फण रहित)। दर्वीकर कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
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