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जीवाजीवाभिगम सूत्र
... १८. आहार द्वार - नैरयिक जीवों का आहार छह दिशाओं में से आगत पुद्गल द्रव्यों का होता है क्योंकि नैरयिक जीव लोक के मध्य में होते हैं। लोक के निष्कुट (किनारे) पर नहीं होने के कारण उनके व्याघात नहीं होता अतः वे छह दिशाओं के अशुभ वर्ण, गंध, रस और स्पर्श वाले पुद्गलों को आहार रूप में ग्रहण करते हैं।
१९. उपपात द्वार - नैरयिक जीवों का उपपात तिर्यंचों से और मनुष्यों से होता है किंतु असंख्यातवर्ष की आयु वाले तिर्यंचों और मनुष्यों में से नहीं होता है।
२०. स्थिति द्वार - नैरयिकों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस . सागरोपम है। अलग अलग नरकों के नैरयिकों की स्थिति इस प्रकार हैं -
१. पहली नरक के नैरयिक की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष उत्कृष्ट १ सागरोपम की। २. दूसरी नरक के नैरयिक की स्थिति जघन्य एक सागरोपम उत्कृष्ट ३ सागरोपम की। ३. तीसरी नरक के नैरयिक की स्थिति जघन्य ३ सागरोपम उत्कृष्ट ७ सागरोपम की। ४. चौथी नरक के नैरयिक की स्थिति जघन्य ७ सागरोपम उत्कृष्ट १० सागरोपम की। . ५. पांचवीं नरक के नैरयिक की स्थिति जघन्य १० सागरोपम उत्कृष्ट १७ सागरोपम की। . ६. छठी नरक के नैरयिक की स्थिति जघन्य १७ सागरोपम उत्कृष्ट २२ सागरोपम की। ७. सातवीं नरक के नैरयिक की स्थिति जघन्य २२ सागरोपम उत्कृष्ट ३३ सागरोपम की।
२१. समवहत द्वार - नैरयिक जीव मारणांतिक समुद्घात से समवहत होकर भी मरते हैं और असमवहत होकर भी मरते हैं।
२२. उद्ववर्तना द्वार - नैरयिक पर्याय से निकल कर नैरयिक जीव असंख्यात वर्ष काले तिर्यंचों और मनुष्यों को छोड़ कर संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों और मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं किंतु सम्मूर्च्छिम मनुष्यों में उत्पन्न नहीं होते।
२३. गति आगति द्वार - नैरयिक जीव दो गतियों से आते हैं और दो गतियों में ही जाते हैं - तिर्यंच गति और मनुष्य गति। नैरयिक जीव प्रत्येक शरीरी और असंख्यात हैं। यह नैरयिकों का वर्णन हुआ।
तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों का वर्णन से किं तं पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया?
पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सम्मुच्छिम पंचेंदियतिरिक्ख जोणिया य, गब्भवक्कंतिय पंचेंदियतिरिक्ख जोणिया य॥३३॥ .
भावार्थ - प्रश्न - तिर्यंच पंचेन्द्रियों का क्या स्वरूप है ?
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