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________________ प्रथम प्रतिपत्ति - पंचेन्द्रिय जीवों का वर्णन विवेचन - चउरिन्द्रिय जीवों के २३ द्वारों का वर्णन तेइन्द्रिय जीवों की तरह समझना चाहिये । जो अन्तर है वह इस प्रकार हैं - १. अवगाहना द्वार - चउरिन्द्रिय जीवों की अवगाहना उत्कृष्ट चार कोस की है। २. इन्द्रिय द्वार - चउरिन्द्रिय जीवों के चार इन्द्रियाँ होती हैं । ३. दर्शन द्वार- ये चक्षुदर्शन वाले और अचक्षुदर्शन वाले हैं। ४. स्थिति द्वार - इनकी उत्कृष्ट स्थिति छह मास की है । शेष सारा वर्णन तेइन्द्रिय जीवों के समान है यावत् वे असंख्यात कहे गये हैं। इस प्रकार चउरिन्द्रिय जीवों का कथन पूर्ण हुआ ॥ पंचेन्द्रिय जीवों का वर्णन से किं तं पंचेंदिया ? पंचेंदिया चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा - णेरड्या, तिरिक्खजोणिया, मणुस्सा देवा ॥ ३१ ॥ भावार्थ- पंचेन्द्रिय जीवों का क्या स्वरूप हैं ? पंचेन्द्रिय जीव चार प्रकार के कहे गये हैं । ३. मनुष्य और ४. देव । - नैरयिक जीवों का वर्णन Jain Education International इस प्रकार हैं १. नैरयिक २ तिर्यंचयोनिक से किं तं णेरड्या ? णेरड्या सत्तविहा पण्णत्ता, तं जहा- रयणप्पभापुढवि णेरड्या जाव अहे सत्तम पुढवि णेरड्या, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्ता य अपज्जत्ता य । भावार्थ प्रश्न नैरयिक कितने प्रकार के कहे गये हैं? ६५ - उत्तर - नैरयिक सात प्रकार के कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं रत्नप्रभा पृथ्वी नैरयिक यावत् अधः सप्तम पृथ्वी नैरयिक। ये नैरयिक जीव संक्षेप से दो प्रकार के कहे गये हैं पर्याप्तक और अपर्याप्तक । - विवेचन - नैरयिक शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार है- "तत्र अयम्- इष्टफलं कर्म, निर्गतं अयं येभ्यस्तेनिरया नरकावासाः तेषु नरकावासेषु भवा इति नैरयिकाः " अर्थात् निकल गया है इष्टफल जिनमें से वे निरय अर्थात् नरकावास हैं। नरकावासों में उत्पन्न होने वाले जीव नैरयिक हैं। नैरयिक जीव सात प्रकार के कहे गये हैं १. रत्नप्रभा पृथ्वी नैरयिक २. शर्करा प्रभा पृथ्वी नैरयिक For Personal & Private Use Only - - www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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