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जीवाजीवामि सूत्री मा
भावार्थ - वायुकायिकों का स्वरूप क्या है ?
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वायुकायिक दो प्रकार के कहे गये हैं । यथा - सूक्ष्म वायुकाणिक और बादर वायुकायिका सूक्ष्म वायुकायिक, तेजस्कायिक के समान समझने चाहिये। विशेषता यह है कि इनके शरीर का संस्थान पताका (ध्वजा) के आकार का है। वे एक गतिक और दो आगतिक हैं। ये प्रत्येक शरीरी और असंख्यात होते हैं। यह सूक्ष्म वायुकायिकों का निरूपण हुआ। क (क) ग्रामी
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विवेचन वायुही जिनका शरीर है वे जीव वायुकायिक कहे जाते हैं। वायुकायिक जीवों के दो भेद हैं १. सूक्ष्म वायुकायिक- जिन वायुकाव के जीवों के सूक्ष्म नाम कर्म का उदय है और २. बादर वायुकायिक - जिन वायुकायिक जीवों के बादर नीम कर्म का उदय है। सूक्ष्म वायुकायिकों कर वर्णन सूक्ष्म लस्कारिकों के समान है। विशेषता यह है कि सूक्ष्म वायुकायिक जीवों के शरीर पदाला (राजा) के आकार के
किं तं बायस वाक्काया?
root बायर वाउक्काइया अणेगविहा पाणपात्ता, तं जा पाईप्रावार पडीभवाए एवं जे यावणे तहप्पारा ते समासओ दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा - प्रज्जत्तगाय अपज्ज़त्तगा
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ॐ कठिन शब्दार्थ पाईणवाए- प्राचीन (पूर्व) वायु पडीणवाए पश्चिम वायु भावार्थ- कादवाकायिकों के कितने भेद कहे गये हैं? 3
बादर वायुकायिकों के अनेक भेद कहे गये हैं। वे इस प्रकार और इसी प्रकार की अन्य वायु वे संक्षेप से दो प्रकार के कहे गये हैं कि विवेचन बादर चायुकायिक जीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं। ही प्रज्ञापना सूत्र में वर्णित बादर वायुकायिक के भेद इस प्रकार हैं
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हैं। पूर्वी वायु, पश्चिमी वायु पर्याप्तक और अपर्याप्तक
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१. पाईणवाए (पूर्वीवात ) - पूर्व दिशा से आने वाली हवा (वायु) २. पडीणवाए (पश्चिम वात) - पश्चिम से आने वाली हवा ३. दाहिणवाए (दक्षिण वात) - दक्षिण दिशा से आने वाली हवा | ४. उदिणवाए (उदीचिन वात) - उत्तर दिशा से आने वाली हवा | हवीं
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बाबातची दिशा में बहने वाली Dow the अहेवाएं अधोवीत) - नीची दिशा में बहने वाली all ७. तिरियवाए ( तिर्यक् वात) - तिरछी दिशा में बहने वाली हवा ८. विदिसिवाए (विदिशा वात) - विदिशाओं में बहने वाली हवा
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