________________
, प्रथम प्रतिपत्ति
जस्कायिक जीवों का वर्णन
कॉन भावार्थ - तेजस्कायिक
त्रस। तेजस्कायिकों और वायुकायिकों को गति स कहा गया है जबकि उदार घस इन्द्रियामआदि जीव लब्धि स काहायला FIREE F Fip के लिiagrri लीला
FE FIREFHITE ISHITara FREE को मार ER STE &$ For
Su m a ir Flis BiKTY STE Ik #fa n asy FFF) FSSP FSF TE VEI FISKISTE TE FTE STI . तेउक्काइया विहा पण्णत्ता, तं जहा - सहम तेउक्काइयाय बायर तेउवकाइया
THE TRITERो कि शिशF Epps कापला TEE - Fssी FRIGER 6,39 anze JETS TE BE FEMA FIPE e stawp FE कामको मधमाशा वषां पर
क.कह गय हाव इस प्रकार है - १. सूक्ष्म तिजस्कायिक और ३. बांदर शकिएको फिी माका PETH FASE
HD तेजस्कायिक।
QUE HITTE NYTE OS FIT BY EFTER EN PSE IDEE E DITE PER विवेचन - तेजस् अर्थात् अग्नि। अग्नि ही जिनका शरीर है वे जीवं तेजस्कायिक कहे जाते हैं। तेजस्कायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं - सूक्ष्म तेजस्कायिक और. बादर तेजस्कायिक। जो तेजस्कायिक सक्षम नाम कर्म के उदय वाले हैं वे सक्ष्म तेजस्कायिक कहलातेलिन लागि जीवों के बादर नाम कर्म का उदय है व बंदिर तेजस्कौयिक कहलाते हैं। सूक्ष्म तेजस्कीयक जीव सारे लोक में व्याप्त हति है। MEHTRY F THEprh fours शमीणार्ण
यहां पर तेजस्कायिक एवं वायुकायिकों को त्रस कहीं गया है वह पति की अपेक्षा प्रेस समझना चाहिने आशय यह है कि-सजस्काय एवं वायुकाय के जीक अपने मूलारीर (आधारिकार) के साथै जीवित अवस्था में आगे आने-गति करकेशान्सको ही इस प्रकार इनमें स्वाभाविक रूप से गति करके आगे जाने की क्षमता है। इसके सिवाच शेष तीन स्थावरों एपृथ्वीपाती, कास्वलिभाकिजीवों में जीवित अवस्था में इस प्रकार की स्वाभाविक गति नहीं होती है। बायु आदि के माध्यम साहीवे आगे गति कर सकते हैं। बिना माध्यम के एक स्थान से दूसरे स्थान पर काल किये बिना नहीं जा सकते हैं। तेजस्कार्य एवं वायुंकाय में प्रेस जीवों की तरह इच्छा पूर्वक गतिमिहीं होने पर भी स्वाभाविक गति धर्म की साधम्र्यता के कारण यही मिल पाठ में इन्हें मैति स कहाँ गया है। माना ESTE IFite
से कि त सहमतेडक्कोडया FPS काशीका) 55755RE .- FESi सहमतउक्काइया जहा राम पुलाव वक्काइया
लाव सठिया, एगगइया दुआगइया परित्ता असंखेज्जा प्रपणना, सेसंतं चेव, से त्तं अहमतेडक्काइया २४॥ THE TET F S को -- (STATE ) TEST
कठिन शब्दार्थ - सूइकलाव संठिया - सूचिकलाप (सूइयों का पिण्डों संस्थान बालो।
ण
सरा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org