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तृतीय प्रतिपत्ति- मनुष्य उद्देशक - गजकर्ण द्वीप के मनुष्य
गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरपच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुहं तिणि जोयण० से जहा एगूरुयाणं ॥ १११ ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! दक्षिण दिशा के वैषाणिक मनुष्यों का वैषाणिक द्वीप कहां है ? उत्तर - हे गौतम! जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के दक्षिण में और चुल्लहिमवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिण पश्चिम के चरमांत से तीन सौ योजन जाने पर वैषाणिक मनुष्यों का वैषाणिक नामक द्वीप है । शेष सारा वर्णन एकोरुक द्वीप की तरह कह देना चाहिये ।
कर्ण द्वीप के मनुष्य
कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं हयकण्णमणुस्साणं हयकण्णदीवे णामं दीवे पण्णत्ते ?
• गोयमा ! एगूरुयदीवस्स उत्तरपुरच्छिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुद्दं चत्तारि जोयणसयाई ओगाहित्ता एत्थ णं दाहिणिल्लाणं हयकण्णमणुस्साणं हयकण्णदीवे णामं दींवे पण्णत्ते, चत्तारि जोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं बारस जोयणसया पण्णी किंचिविसेसूणा परिक्खेवेणं, से णं एगाए पउमवरवेइयाए अवसेसं जहा एगूरुयाणं ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! दक्षिण दिशा के हयकर्ण मनुष्यों का हयकर्ण नामक द्वीप कहां है ? उत्तर - हे गौतम! एकोरुक द्वीप के उत्तर पूर्व के चरमांत से लवण समुद्र में चार सौ योजन आगे जाने पर वहां दक्षिण दिशा के हयकर्ण मनुष्यों का हयकर्ण नामक द्वीप है। वह चार सौ योजन का लम्बा चौड़ा है और बारह सौ पैंसठ योजन से कुछ अधिक उसकी परिधि है। वह एक पद्मवरवेदिका से घिरा हुआ है शेष सारा वर्णन एकोरुक द्वीप के समान कह देना चाहिये ।
गजकर्ण द्वीप के मनुष्य
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कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं गयकण्णमणुस्साणं पुच्छा,
गोयमा! आभासियदीवस्स दाहिणपुरच्छिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुद्दं चत्तारि जयसाई से जहा हयकण्णाणं । एवं गोकण्णमणुस्साणं पुच्छा, वेसाणियदीवस्स दाहिणपच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुद्दं चत्तारि जोयणसयाइं सेसं जहा हयकण्णाणं ।
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