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जीवाजीवाभिगम सूत्र
वेदिका-चबूतरी के जैसे. चोप्पाल-मत्त हाथी के जैसे आकार वाले, वरभवणसयणासणविसिट्ठसंठाणसंठिया- वर भवन शयनासन विशिष्टसंस्थान संस्थिताः, सुहसीयलच्छाया - शुभ शीतल
छाया वाले
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उन वृक्षों का आकार कैसा होता है ? '
उत्तर - हे गौतम! वे वृक्ष पर्वत के शिखर के आकार के, नाट्यशाला के आकार के, छत्र के आकार के, ध्वजा के आकार के, स्तूप के आकार के, तोरण के आकार के, गोपुर जैसे,वैदिका जैसे चोप्पाल (मत्त हाथी) के आकार के, अट्टालिका जैसे, राजमहल जैसे, हवेली जैसे, गवाक्ष जैसे, जल प्रासाद जैसे, छज्जावाले घर के आकार के हैं तथा हे आयुष्मन् श्रमण! और भी वहां वृक्षं हैं जो विविध भवनों, शयनों, आसनों आदि के विशिष्ट आकार वाले और सुखरूप शीतल छाया वाले हैं।
एकोरुक द्वीप में घर आदि अस्थि णं भंते! एगोरुयदीवे दीवे गेहाणि वा गेहावणाणि वा? णो इणढे समटे, रुक्खगेहालया णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो! कठिन शब्दार्थ - गेहाणि - गृहा-घर, गेहावणाणि - घरों के बीच का मार्ग।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! एकोरुक नामक द्वीप में घर अथवा घरों के बीच का मार्ग है? - उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। हे आयुष्मन् श्रमण! वे मनुष्य गृहाकार बने हुए वृक्षों पर रहते हैं।
एकोरुक द्वीप में ग्राम आदि अस्थि णं भंते! एगूरुयदीवे दीवे गामाइ वा णगराइ वा जाव सण्णिवेसाइ वा? णो इणढे समढे, जहिच्छियकामगामिणो ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो! भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में ग्राम नगर यावत् सन्निवेश है ?
उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं हैं। हे आयुष्मन् श्रमण! वे मनुष्य इच्छानुसार गमन करने वाले हैं।
___एकोरुक द्वीप में असि आदि अस्थि णं भंते! एगूरुयदीवे दीवे असीइ वा मसीइ वा कसीइ वा पणीइ वा वणिज्जाइ वा?
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