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________________ तृतीय प्रतिपत्ति - मनुष्य उद्देशक - एकौरुक मनुष्य स्त्रियों का वणन ३२३ सहियसुजायलट्ठचुचूय आमेलगजमलजुयल वट्टिय अब्भुण्णयरइयसंठियपओहराओ - काञ्चन कलशसमप्रमाणसमसंहित सुजात लष्ट चुचुकामेलक यमल युगल वर्तिताभ्युन्नतरतिद संस्थित पयोधराःउनके पयोधर (स्तन) सोने के कलश के समान प्रमाणोपेत, समसंहत बराबर मिले हुए, सुजात सुंदर हैं उनके चुचूक मुकुट के समान लगते हैं दोनों एक साथ उत्पन्न होते और एक साथ वृद्धिंगत होते हैं गोल, उन्नत और प्रीतिकारी होते हैं, भुयंगणु पुव्वतणुयगोपुच्छवट्टसमसहिय णमिय आएज्ज ललिय बाहाओ - भुजङ्गानुपूर्व्यतनुक गोपुच्छवृत्त समसंहित नत आदेय ललित बाहव:-भुजंग की तरह अनुक्रम से पतली गोपुच्छ की तरह गोल, आपस में समान और मिली हुई, नत, आदेय और सुंदर बाहु, पीणुण्णयकक्खवत्थिदेसा - पीनोन्नत कक्षवस्तिदेशा:-पीन और उन्नत कक्ष और वस्ति भाग, दहिदगरयचंदकुंदवासंतिमउल अच्छिद्दविमलदसणा - 'दधिदकरजश्चन्द्रकुंद-वासन्ती मुकुला च्छिद्रविमलदसनाः-दही, जलकण, चन्द्र, कुंद वासंतीकली के समान श्वेत और छिद्र विहीन दांत। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! एकोरुक द्वीप की मनुष्य स्त्रियों का आकार प्रकार आदि कैसा कहा गया है? ... उत्तर - हे गौतम! वे मनुष्यस्त्रियां श्रेष्ठ अवयवों से सर्वांग सुंदर हैं, महिलाओं के श्रेष्ठ गुणों से युक्त हैं। उनके चरण अत्यंत विकसित पद्म कमल की तरह सुकोमल और कछुए की तरह उन्नत होने से सुंदर आकार के हैं। उनके पांवों की अंगुलियां सीधी, कोमल, स्थूल, निरन्तर, पुष्ट और मिली हुई हैं। उनके नख उन्नत, रति देने वाले, पतले, तांबे जैसे लाल, स्वच्छ एवं स्निग्ध हैं। उनकी पिण्डलियां रोम रहित, गोल, सुंदर, संस्थित, उत्कृष्ट शुभ लक्षण वाली और प्रीतिकर होती हैं। उनके घुटने सुनिर्मित, सुगूढ और सुबद्ध संधि वाले हैं, उनकी जंघाएं कदली के स्तंभ से भी अधिक सुन्दर, व्रणादि रहित, सुकोमल, मृदु, कोमल, पास-पास, समान प्रमाण वाली, मिली हुई, सुजात गोल, मोटी एवं निरन्तर हैं, उनकी कमर के नीचे का भाग अष्टापद द्यूत के पट्ट के आकार का, शुभ, विस्तीर्ण और मोटा है, मुख प्रमाण से दुगुना चौबीस अंगुल प्रमाण, विशाल, मांसल एवं सुबद्ध उनका जघन प्रदेश है, उनका पेट वज्र की तरह सुशोभित, शुभ लक्षणों वाला और पतला होता है, उनकी कमर त्रिवली से युक्त, पतली और लचीली होती है उनकी रोमराजि सरल, सम, मिली हुई, जन्मजात पतली, काली, स्निग्ध, सुहावनी सुंदर, सुविभक्त, सुजात, कांत, शोभायुक्त, रुचिर और रमणीय होती है। उनकी नाभि गंगा के आवर्त की तरह दक्षिणावर्त, तरंग भंगुर सूर्य की किरणों से ताजे विकसित हुए कमल की तरह गंभीर और विशाल है। उनकी कुक्षि उग्रता रहित, प्रशस्त और स्थूल है। उनके पार्व कुछ झुके हुए, प्रमाणोपेत, सुंदर, जन्मजात सुंदर, परिमित मात्रा युक्त स्थूल और आनंद देने वाले हैं। उनका शरीर इतना मांसल होता है कि उसमें पीठ की हड्डी और पसलियां दिखाई नहीं देती हैं। उनका शरीर सोने जैसी कांति वाला, निर्मल, जन्मजात सुंदर और ज्वर आदि उपद्रव से रहित होता है। उनके पयोधर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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