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जीवाजीवाभिगम सूत्र
मलोत्सर्ग के लेप से रहित अपान देश (गुदा भाग) वाले, सुंदर पृष्ठ भाग उदर और जंघा वाले, उन्नत और मुष्टि ग्राह्य कुक्षि वाले और पद्मकमल तथा उत्पल कमल जैसी सुगंध युक्त श्वासोच्छ्वास से सुगंधित मुख वाले वे मनुष्य हैं। उनकी ऊंचाई आठ सौ धनुष की होती है।
तेसिं मणुयाणं चउसट्टि पिट्टिकरंडगा पण्णत्ता समणाउसो! ते णं मणुया पगइभद्दगा पगइविणीयणा पगइउवसंता पगइ पयणुकोहमाणमायालोभा मिउमद्दवसंपण्णा अल्लीणा भद्दगा विणीया अप्पिच्छा असंणिहिसंचया अचंडा विडिमंतरपरिवसणा जहिच्छियकामगामिणो य ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो!। • कठिन शब्दार्थ - पिट्टिकरंडगा - पृष्ठ करण्डकाः-पृष्ठकरंडक (पसलियां), पगइपयणुकोहमाणमायालोभा - प्रकृत्यैव प्रतनु क्रोध मान माया लोभा:-स्वभाव से अतिमंद क्रोध मान माया लोभ वाले, मिउमद्दवसंपण्णा - मृदु-मार्दव संपन्न, अल्लीणा - आलीना:-संयत चेष्टा वाले भद्दगाभद्रकाः, असंणिहिसंचया - असन्निधि संचया:-संचय-संग्रह नहीं करने वाले, विडिमंतर - परिवसणा - विडिमान्तर परिवसना:-वृक्षों की शाखाओं में रहने वाले, जहिच्छियकामगामिणो - यथेप्सित कामकामिनः-इच्छानुसार विचरण करने वाले।
भावार्थ - हे आयुष्मन् श्रमण! उन मनुष्यों के चौसठ पसलियां होती हैं वे मनुष्य स्वभाव से भद्र, स्वभाव से विनीत, स्वभाव से शान्त, स्वभाव से अल्प क्रोध मान माया लोभ वाले, मृदुता और मार्दव से संपन्न, अल्लीन (संयत चेष्टा वाले) हैं, भद्र, विनीत, अल्प इच्छा वालें, संचय-संग्रह न करने वाले, . क्रूर परिणामों से रहित, वृक्षों की शाखाओं में रहने वाले और इच्छानुसार विचरण करने वाले वे , एकोरुक द्वीप वाले मनुष्य हैं।
तेसि णं भंते! मणुयाणं केवइकालस्स आहारट्टे समुप्पज्जइ? गोयमा! चउत्थभत्तस्स आहारट्टे समुप्पज्जइ। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उन मनुष्यों को कितने काल में आहार की अभिलाषा होती है?
उत्तर - हे गौतम! उन मनुष्यों को चतुर्थ भक्त अर्थात् एक दिन छोड़ कर दूसरे दिन आहार की अभिलाषा होती है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में एकोरुक द्वीप के मनुष्यों का वर्णन किया गया है। आगे के सूत्र में एकोरुक द्वीप की मनुष्य स्त्रियों का वर्णन किया जाता है -
एकोरुक मनुष्य स्त्रियों का वर्णन एगोरुयमणुईणं भंते! केरिसए आगारभाव पडोयारे पण्णत्ते? गोयमा! ताओ णं मणुईओ सुजाय सव्वंग सुदंरीओ पहाणमहिलागुणेहिं जुत्ता
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