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________________ तृतीय प्रतिपत्ति - मनुष्य उद्देशक - एकोरुक द्वीप के मनुष्यों का वर्णन ३१५ देह धारी होते हैं जिसके पृष्ठ की हड्डी नहीं दिखती है, कनक के समान जो दीप्ति वाला है जो निर्मल, गर्भ जन्म दोष रहित और निरुपहत (स्वस्थ-ज्वरादि से रहित) होता है, कणगसिलायलुज्जलपसत्यसमतलोवचियविच्छिण्ण पिहुलवच्छा - कनकशिला तल उज्ज्वल प्रशस्त समतलोपचित विस्तीर्ण पृथुल बस्तयः - उनका वक्षस्थल सोने की शिला तल जैसा उज्ज्वल, प्रशस्त, समतल, पुष्ट, विस्तीर्ण और स्थूल होता है, सिरिवच्छंकियवच्छा - श्रीवत्साङ्कितवक्षसः - श्रीवत्सकी चिह्नांकित छाती, पुरवरफलिहट्टियभुया - पुरवर परिघवृतभुजाः - नगर की अर्गला के समान लम्बी भुजा, भुयगीसरविउलभोग आयाणफलिहउच्छूढदीहबाहू - भुजगेश्वर विपुल भोग आदान परिघोत्क्षिप्त दीर्घबाहवः - शेष नाग के विपुल शरीर तथा उठाई हुई अर्गला के समान लम्बे बाहु वाले जूयसण्णिभपीणरइय पीवरपउट्ठसंठिय सुसिलिट्ठ विसिट्ठ घथिरसुबद्धसुविगूढपव्वसंधी - यूपसन्निभरतिदपीवर प्रकोष्ठ संस्थित सुश्लिष्ट विशिष्ट घन स्थिर सुबद्ध सुनिगूढ पर्व सन्धयः -- हाथों की कलाइयां बैलों के कंधे पर रखे जाने वाले जूए के समान दृढ, आनंद देने वाली, पुष्ट, सुस्थित, सुश्लिष्ट (सघन) विशिष्ट, घन, स्थिर, सुबद्ध और निगूढ पर्व संधियों वाली है, रत्ततलोवइयमउय मंसलपसत्थ लक्खणसुजाय अच्छिद्दजालपाणी - रक्त तलोपचित मृदुक मांसल प्रशस्तलक्षण सुजात अच्छिद्र जाण पाणयः - उनके हाथ रक्त तल वाले, पुष्ट, मृदुल-चिकने, मांसल, प्रशस्त लक्षण युक्त, सुंदर और छिद्र रहित अंगुलियों वाले होते हैं, पीवरवट्टियसुजाय कोमलवरंगुलिया - पीवर वृत्त सुजात कोमलवरांगुलिकाः - पुष्ट, गोल, सुजात और कोमल अंगुलियां, तंबतलिणसुइरुइर णिद्धणक्खा - ताम्र तलिन शुचि रुचिर स्निग्ध नखाः - ताम्र वर्ण के पतले, स्वच्छ, मनोहर और स्निग्ध नख वाले चंदसूरसंखचक्कदिसासोत्थियपाणिलेहा - चन्द्र सूर्य शंख चक्र दिक्सौवस्तिक पाणि रेखाः - जिनके हाथों में चन्द्र-सूर्य, शंख, चक्र, दक्षिणावर्त स्वस्तिक की रेखाएं होती है, अणेगवरलक्खणणुत्तम पसत्थसुइरइय पाणिलेहा - अनेक वर लक्षणोत्तम प्रशस्त शुचिरतिद् पाणि रेखा: - उनके हाथ में अनेक श्रेष्ठ लक्षणयुक्त उत्तम प्रशस्त, स्वच्छ, आनंद देने वाली रेखाएं होती हैं, वरमहिसवराहसीहसहुलउसभणागवर पडिपुण्णविउल उण्णयमइंदखंधा - वर महिष वराह सिंह शार्दुल वृषभ नागवर पडिपूर्ण विपुलोन्नत स्कंधाः - श्रेष्ठ भैंस, वराहसिंह शार्दुल, बैल और हाथी की तरह प्रतिपूर्ण विपुल और उन्नत स्कन्ध वाले, चउरंगुलसुप्पमाणकंबुवरसरिसगीवा - चतुरंगुल सुप्रमाण कम्बुवर सदृशग्रीवाः - चार अंगुल प्रमाण और श्रेष्ठ शंख के समान ग्रीवा, अवट्ठिय सुविभत्त सुजाय चित्त मंसू मंसल संठिय पसत्थ सहूल विपुलहणुया - अवस्थित सुविभक्त सुजात चित्रश्मश्रुवः मांसल संस्थित प्रशस्त शार्दुल विपुल हनुकाः - उनकी ठुड्ढी अवस्थित सुविभक्त-अलग अलग सुंदर रूप से उत्पन्न - दाढी के बालों से युक्त मांसल, सुंदर संस्थान युक्त प्रशस्त और व्याघ्र की विपुल-विस्तीर्ण ठुड्ढी के समान है, ओतवियसिलप्पवाल बिंबफलसण्णिभाहरोहा - ओयविय शिलाप्रवाल बिम्बफल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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