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________________ तृतीय प्रतिपत्ति - मनुष्य उद्देशक - एकोरुक द्वीप के मनुष्यों का वर्णन ३१३ WARNAMANANKARNAMAHARAMPAR *************** ****** ** ***** पसत्थलक्खणसुजाय अच्छिद्दजालपाणी पीवरवट्टियसुजायकोमलवरंगुलीया तंबतलिणसुरुइर-णिद्धणक्खा चंदपाणिलेहा सूरपाणिलेहा संखपाणिलेहा चक्कपाणिलेहा दिसासोत्थिय-पाणिलेहा चंदसूरसंखचक्कदिसासोत्थियपाणिलेहा अणेगवरलक्खणुत्तम-पसत्थ-सुइरइयपाणिलेहा वरमहिसवराहसीह-सहुलउसभणागवरपडिपुण्ण विउल उण्णय मइंदखंधा चउरंगुलसुप्पमाण कंबुवरसरिसगीवा अवट्ठिय सुविभत्तसुजाय-चित्तमंसूमंसल संठियपसत्थ-सहूलविपुलहणुया ओतविय सिलप्पवालबिंबफलसण्णि-भाहरोट्ठा पंडुरससिसगल-विमलणिम्मल-संखगोखीरफेणदगरय मुणालिया धवलदंतसेढी अखंडदंता अफुडियदंता अविरलदंता सुजायदंता एगदंतसेढिव्व अणेगदंता हुयवहणिद्धंत-धोयतत्ततवणिज्ज रत्ततलतालुजीहा गरुलाययउज्जुतुंग णासा अवदालियपोंडरीय णयणा कोयासिय-धवल-पत्तलच्छा आणामियचावरुइलकिण्हपूराइय संठिय संगय आययसुजाय तणुकसिणणिद्धभुमया अल्लीणपमाणजुत्तमवणा सुस्सवणा पीणमंसल कवोलदेसभागा अचिरुग्गयबाल-चंदसंठियपसत्थविच्छिण्णसमणिडाला उड्डुवइपडिपुण्ण-सोमवयणा छत्तागारुत्तमंगदेसा घणणिचिय-सुबद्धलक्खणुण्णय कूडागार-णिभ-पिंडियसीसे दाडिमपुप्फपगास तवणिज्जसरिसणिम्मलसुजाय केसंतकेसभूमी सामलिबोंडघणणिचिय छोडियमिउविसय पसत्थ-सुहमलक्खण-सुगंधसुंदर-भूयमोयग-भिंगिणीलकज्जल-पहट्ठभमर-गणणिद्धणिउरुंब णिचिय कुंचिय चियपयाहिणावत्तमुद्धसिरया लक्खणवंजणगुणोववेया सुजायसुविभत्तसुरूवगा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। . कठिन शब्दार्थ - आयारभावपडोयारे - आकार भाव प्रत्यवतार: - आकार प्रकार आदि स्वरूप, अणुवमतरसोमचारुखवा - अनुपमतर, सौमचारुरूपाः - चन्द्रमा की तरह अत्यंत सुंदर रूप वाले, भोगुत्तमगयलक्खणा - भोगोत्तमगत लक्षणा: - उत्तम भोगों के सूचक लक्षणों वाले, भोगसस्सिरीया - भोगसश्रीका: - भोगजन्य शोभा से युक्त, सुजायसव्वंगसुंदरंगा - सुजात सर्वांग सुंदराङ्गाः - श्रेष्ठ और सुंदर प्रमाणोपेत अंग वाले, सुपइट्ठिय कुम्मचारुचलणा - सुप्रतिष्ठित कूर्म चारु चरणाः - सुंदर आकार और कच्छप की पीठ जैसे उन्नत चरण वाले, रत्तुप्पलपत्तमउयसुकुमालकोमलतला - लाल और उत्पल (कमल) के पत्र के समान मृदु पांवों के तल वाले, णगणगरसागरमगरचक्कंकवरंकलक्खणंकियचलणा - पर्वत, नगर, समुद्र, मगर, चक्र, चन्द्रमा आदि के चिन्हों से युक्त चरण वाले, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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