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तृतीय प्रतिपत्ति - मनुष्य उद्देशक - दस वृक्षों का वर्णन - अनग्ना नामक वृक्ष
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कठिन शब्दार्थ - अणिगणा - अनग्ना-वस्त्र आदि का काम देने वाले, आईणग - आजिनकचर्मवस्त्र, खोमतणुय - कपास के वस्त्र, कंबल - ऊन के वस्त्र, दुगुल्ल - दुकूल-मुलायम बारीक वस्त्र, कोसेज्ज - कोशेय-रेशम के कीड़ों से निर्मित वस्त्र, कालमिगपट्ट - काले मृग के चर्म से बने वस्त्र, चीणंसुय - चीनांशुक-चीनदेश में निर्मित वस्त्र, आभरणचित्त - आभूषणों के द्वारा चित्रित, सहिणगश्लक्ष्ण-सूक्ष्म तंतुओं से निष्पन्न वस्त्र, कल्लाणग- कल्याणक-महोत्सव आदि पर पहनने योग्य उत्तम वस्त्र, भिंगिमेहणीलकज्जल - भुंगी (भंवरी) नील और काजल जैसे वर्ण के वस्त्र, मक्खयमिगलोम - स्निग्ध मृग रोम के वस्त्र, हेमरुप्पवण्णग - सोने चांदी के तारों से बने वस्त्र, अवरुत्तग - अपर-पश्चिम देश और उत्तरदेश का बना वस्त्र, सिंधुओसभदामिलबंगकलिंगणेलिणतंतुमयभत्तिचित्ता- सिन्धू, ऋषभ, तामिल, बंग, कलिंग देशों में बना हुआ सूक्ष्म तंतुमय बारीक वस्त्र, वरपट्टणुग्गया - वरपत्तनोद्गता:-श्रेष्ठ नगरों के कुशल कारीगरों से बना हुआ, वण्णरागकलिया - वर्णरागकलिता:-मजिष्ठादि सुंदर रंगों से रंगे हुए। - भावार्थ - हे आयुष्मन् श्रमण! एकोरुक द्वीप में स्थान स्थान पर बहुत से अनग्ना नाम के वृक्ष कहे गये हैं। जैसे - आजिनक (चर्मवस्त्र) क्षोम वस्त्र, कंबल, दुकुल (मुलायम बारीक वस्त्र) रेशमी वस्त्र, काले मृग के चर्म से बने वस्त्र, चीन देश के वस्त्र, नाना देशों के प्रसिद्ध वस्त्र, आभूषणों द्वारा चित्रित वस्त्र, बारीक तंतुओं से बने वस्त्र, कल्याणक वस्त्र, भंवरी नील और काजल जैसे वर्ण के वस्त्र, रंग बिरंगे वस्त्र, लाल पीले श्वेत वस्त्र, स्निग्ध मृग रोम के वस्त्र, सोने चांदी के तारों से निर्मित वस्त्र, पश्चिम देश का बना वस्त्र, उत्तरदेश का बना वस्त्र, सिन्धू-ऋषभ-तमिल-बंग-कलिंग देशों में बना हुआ सूक्ष्म तंतुमय बारीक वस्त्र इत्यादि नाना प्रकार के वस्त्र हैं जो श्रेष्ठ नगरों (देशों) के कुशल कारीगरों से निर्मित हैं, सुंदर वर्ण वाले हैं उसी प्रकार अनग्ना नाम के वृक्ष हैं जो अनेक और बहुत प्रकार के विरसा परिणाम से परिणत विविध वस्त्रों से युक्त हैं। वे वृक्ष कुश काश से रहित मूल वाले हैं यावत् वे अतीव अतीव शोभा से शोभायमान हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में एकोरुक द्वीप में पाये जाने वाले दस प्रकार के वृक्षों का वर्णन किया गया है। उनके नाम और अर्थ इस प्रकार हैं -
१. मत्तंगा - शरीर के लिये पौष्टिक रस देने वाले। २. भृतांगा - पात्र आदि देने वाले।
३. त्रुटितांगा - बाजे (वादिन्त्र) का काम देने वाले। .. ४. दीपांगा - दीपक का काम देने वाले।
५. ज्योतिरंगा - प्रकाश को ज्योति कहते हैं। सूर्य के समान प्रकाश देने वाले। अग्नि को भी ज्योति कहते हैं अत: अग्नि का काम देने वाले।
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