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जीवाजीवाभिगम सूत्र
३. त्रुटितांगा नामक वृक्ष
एगोरुयदीवे णं दीवे तत्थ तत्थ बहवे तुडियंगा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से आलिंगमुयंगपणव पडहदहर करडिडिंडिमभंभाहोरंभ कण्णियास खरमुहि मुकुंद संखिय परिलीवव्वग परिवाइणिवंसावेणुवीणासुघोस विवंचि महइकच्छ भिरगसगातल ताल कंसताल सुसंपउत्ता आओज्जविहीणिउणगंधव्व समयकुसलेहिं फंदिया तिट्ठाणकरणसुद्धा तहेव ते तुडियंगयावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणामा ततवितत घणझुसिराए चउव्विहाए आओज्जविहीए उववेया फलेहिं पुण्णा विसति कुसविकस विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ३ ॥
कठिन शब्दार्थ - तुडियंगा - त्रुटिताङ्गा - बाजे ( वादिन्त्र) का काम देने वाले।
भावार्थ - हे आयुष्मन् श्रमण ! एकोरुक द्वीप में स्थान स्थान पर बहुत से त्रुटितांगा नामक द्रुमगण हैं। जैसे मुरज, मृदंग, प्रणव (छोटा ढोल), पटह (ढोल), दर्दरक (काष्ट की चौकी पर रख कर बजाया जाने वाला तथा गोधादि के चमड़े से मढा हुआ वाद्य) करटी, डिंडिंग, भंभा-ढक्का, होरंभ (महाढक्का), क्वणित ( वीणा विशेष ), खरमुखी (काहला), मुकुंद (मृदंग विशेष), शंखिका (छोटा शंख), परिलीवच्चक (घास के तृणों को गूंथ कर बनाये जाने वाले वाद्य विशेष), परिवादिनी (सात तार वाली वीणा), वंश (बांसुरी), वीणा - सुघोषा - विपंची महती कच्छपी (ये सब वीणाओं के प्रकार हैं) रिगंसका ( घिस कर बजाये जाने वाला वाद्य), तलताल (हाथ बजाई जाने वाली ताली) कांस्यताल (कांसी का वाद्य जो ताल देकर बजाया जाता है) आदि वादिन्त्र जो सम्यक् प्रकार से बजाये जाते हैं वाद्य कला में निपुण एवं गंधर्व शास्त्र में कुशल व्यक्तियों द्वारा जो बजाये जाते हैं जो आदिमध्य अवसान रूप तीन स्थानों से शुद्ध हैं वैसे ही ये त्रुटितांगा वृक्ष नानाप्रकार के स्वाभाविक परिणाम से परिणत होकर तत, वितत, घन और शुषिर रूप चार प्रकार की वाद्य विधि से युक्त होते हैं। ये फलादि से लदे हुए और विकसित होते हैं । ये वृक्ष कुशविकुश (कांस) से रहित मूल वाले यावत् अतीव अतीव शोभा से शोभायमान होते हैं।
४. दीपशिखा नामक वृक्ष
एगोरुयदीवे णं दीवे तत्थ तत्थ बहवें दीवसिहा णाम दुम्रगणा पण्णत्ता, समणाउसो! जहा से संझाविरागसमए णवणिहिपणो दीविया चक्कवालविंदे पभूय वट्टिपलित्तणेहे धणिउज्जालिय- तिमिरमद्दए कणगणिगर कुसुमियपालियातयवणप्पासो कंचणमणिरयण विमलमहरिहतवणिज्जुज्जलविचित्तदंडाहि दीवियाहिं सहसा
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