________________
२८२
जीवाजीवाभिगम सूत्र
बीओतिरिक्वजोणिय उद्देसो
तिर्यंच योनिक का द्वितीय उद्देशक प्रथम उद्देशक में तिथंचों का वर्णन करने के बाद विशेष वर्णन करने के लिये यह दूसरा उद्देशक है, जिसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है -
कइविहा णं भंते! संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता? ... गोयमा! छव्विहा पण्णत्ता, तं जहा - पुढविकाइया जाव तसकाइया। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! संसार समापन्नक जीव कितने प्रकार के कहे गये हैं ? '
उत्तर - हे गौतम! संसार समापन्नक जीव छह प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - पृथ्वीकायिक यावत् त्रसकायिक।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में संसारी जीवों के छह भेद बतलाये हैं, वे इस प्रकार हैं - १. पृथ्वीकायिक २. अप्कायिक ३. तेजस्कायिक ४. वायुकायिक ५. वनस्पतिकायिक और ६. त्रसकायिक।
पृथ्वीकायिक आदि जीव से किं तं पुढविकाइया? पुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-सुहुमपुढविकाइया बायरपुढविकाइयाय। से किं तं सुहुम पुढविकाइया?
सूहुमपुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य, से तं सुहपुढविकाइया।
से किं तं बायरपुढविकाइया?
बायरपुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य एवं जहा पण्णवणापए, सण्हा सत्तविहा पण्णत्ता, खरा अणेगविहा पण्णत्ता जाव असंखेग्जा, से तं बायरपुढविकाइया, से तं पुविक्काइया एवं चेव जहा पेण्णवणापए तहेव णिरवसेसं भाणियव्वं जाव वणप्फइकाइया, एवं जाव जत्थेगो तत्थ सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा सिय अणंता, से तं बायर वणप्फइकाइया, से तं वणस्सडकाइया।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org