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________________ - तृतीय प्रतिपत्ति - प्रथम तिर्यंचयोनिक उद्देशक - द्वार प्ररूपणा २७१ तेणं भंते! जीवा किं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता? गोयमा! सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि। भावार्थ-प्रश्न - हे भगवन् ! ये जीव क्या सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं ? उत्तर - हे गौतम! ये जीव सम्यग्दृष्टि भी हैं मिथ्यादृष्टि भी हैं और सम्यमिथ्यादृष्टि भी हैं। प्रश्न - हे भगवन्! वे जीव क्या ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं? उत्तर - हे गौतम! वे जीव ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं वे दो या तीन ज्ञान वाले हैं और जो अज्ञानी हैं वे दो या तीन अज्ञान वाले हैं। प्रश्न - हे भगवन्! वे जीव क्या मनयोगी हैं, वचन योगी हैं या काययोगी हैं? उत्तर - हे गौतम! वे जीव मनयोगी हैं, वचनयोगी भी हैं और काययोगी भी हैं। प्रश्न - हे भगवन्! वे जीव क्या साकारोपयोग वाले हैं या अनाकारोपयोग वाले हैं? उत्तर - हे गौतम! वे जीव साकार उपयोग वाले भी हैं और अनाकार उपयोग वाले भी हैं। ते णं भंते! जीवा कओ उववज्जंति ? किं णेरइएहिंतो उववज्जति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? पुच्छा। गोयमा! असंखेज्जवासाउय अकम्मभूमग अंतरदीवग वजेहिंतो उववजंति। तेसिणं भंते! जीवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? . गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं। तेसि णं भंते! जीवाणं कइ समुग्घाया पण्णत्ता? गोयमा! पंच समुग्घाया पण्णत्ता, तं जहा - वेयणा समुग्घाए जाव तेया समुग्याए। तेणं भंते! जीवा मारणंतिय समुग्घाएणं किं समोहया मरंति, असमोहया मरंति? गोयमा! समोहया वि मरंति असमोहया वि मरंति॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वे जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं या तिथंचों से आकर उत्पन्न होते हैं इत्यादि पृच्छा। उत्तर - हे गौतम! असंख्यात वर्ष की आयु वालों, अकर्मभूमिजों और अंतरद्वीपजों को छोड़ कर सब जगह से उत्पन्न होते हैं। प्रश्न- हे भगवन्! उन जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! उन जीवों की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवां भाग प्रमाण है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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