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________________ जीवाजीवाभिगम सूत्र चण्डाए- चंड, सिग्घाए शीघ्र, उद्धुयाए उद्धत, जवणाए वेगवाली, छेगाए- निपुण, दिव्वाएदिव्य, वीइवयमाणे चलता हुआ, वीइवएज्जा- पार कर सकता है। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावास कितने बड़े कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! यह जम्बूद्वीप नाम का द्वीप जो सबसे आभ्यंतर-अंदर हैं, जो सब द्वीप समुद्रों में छोटा है, जो गोल हैं, तेल तले हुए पूए के आकार का गोल है, रथ के पहिये के आकार का गोल है, कमल की कर्णिका के आकार का गोल है, प्रतिपूर्ण चन्द्रमा के आकार का है, जो एक लाख योजन का लम्बा चौड़ा है यावत् जिसकी परिधि कुछ अधिक है। उसे कोई देव जो महर्द्धिक-महान् ऋद्धि वाला यावत् महानुभाग-महान् प्रभाव वाला है वह अभी अभी कहता हुआ तीन चुटकियां बजाने जितने काल में इस संपूर्ण जंबूद्वीप के इक्कीस चक्कर लगा कर आ जाता है वह देव उस उत्कृष्ट, त्वरित, चपल, चण्ड, शीघ्र, उद्धत, वेगवाली, निपुण ऐसी दिव्य देवगति से चलता हुआ एक दिन, दो दिन तीन दिन यावत् उत्कृष्ट छह मास तक चलता रहे तो भी वह उन नरकावासों में से किसी को पार कर सकेगा, किसी को पार नहीं कर सकेगा। हे गौतम! इतने विस्तार वाले इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावास कहे गये हैं। इसी प्रकार यावत् अधः सप्तम पृथ्वी तक कह देना चाहिये । विशेषता यह है कि वह उसके किसी नरकावास को पार कर सकता है और किसी को पार नहीं कर सकता है। विवेचन प्रस्तुत सूत्र में नरकावासों का विस्तार समझाने के लिए सूत्रकार ने जो उपमा दी है वह इस प्रकार है २२८ - Jain Education International - - यह जम्बूद्वीप सभी द्वीपों और समुद्रों में आभ्यन्तर है अर्थात् आदिभूत है और उन सभी द्वीप समुद्रों में सबसे छोटा है। क्योंकि आगे के लवण समुद्र आदि और धातकीखंड आदि द्वीप क्रमशः दुगुने दुगुने विस्तार वाले हैं। यह जंबूद्वीप गोलाकार है । तेल में तले हुए पूए के समान आकृतिवाला है। 'तेल से तले हुए' विशेषण देने का आशय यह है कि तेल में तला हुआ पूआ प्रायः जैसा गोल होता है वैसा घी में तला हुआ आ नहीं होता। वह जंबूद्वीप रथ के पहिये के समान, कमल की कर्णिका के समान तथा परिपूर्ण चन्द्रमा के समान गोल है। जंबूद्वीप की लम्बाई चौड़ाई एक लाख योजन की है जबकि इसकी परिधि तिगुनी से कुछ अधिक अर्थात् तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्तावीस योजन तीन कोस एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। इतने बड़े जम्बूद्वीप को कोई देव जो महर्द्धिक- बहुत बड़ी ऋद्धि का स्वामी है, महाद्युति वाला है, महाबल वाला है, महायशस्वी है, महा ईश अर्थात् बहुत सामर्थ्य वाला है अथवा महासुखी है अथवा महाश्वास है - जिसका मन और इन्द्रियाँ बहुत व्यापक और स्व विषय को भलीभांति ग्रहण करने वाली है तथा जो विशिष्ट विक्रिया करने में अचिन्त्य शक्ति वाला है वह अवज्ञापूर्वक " अभी पार कर लेता हूँ, अभी पार कर लेता हूँ" ऐसा कह कर तीन चुटकियाँ बजाने में जितना समय लगता है उतने समय For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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