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जीवाजीवाभिगम सूत्र
विवेचन - इस नौवें अल्पबहुत्व में तिर्यंच स्त्री, पुरुष और नपुंसक, मनुष्य स्त्री, पुरुष और नपुंसक, देव स्त्री पुरुष तथा नैरयिक नपुंसकों का शामिल अल्पबहुत्व कहा गया है।
मलयगिरि टीका में आठ ही अल्पबहुत्व का कथन किया गया है। पहला अल्पबहुत्व जो सामान्य स्त्री पुरुष नपुंसक का है उसका कथन टीका में नहीं किया गया है। टीकाकार ने एयासिणं भंते! तिरिक्खजोणिय इत्थीणं... पाठ से ही अल्पबहुत्व का प्रारंभ किया है।
स्त्री-पुरुष नपुंसक की स्थिति आदि इत्थीणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता?
गोयमा! एगेणं आएसेणं जहा पुट्विं भणियं, एवं पुरिसस्स वि णपुंसगस्स वि, संचिट्ठणा पुणरवि तिण्हं पि जहा पुव्विं भणिया, अंतरं पि तिण्हं पि जहापुव्विं भणियं तहा णेयव्वं॥६३॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! स्त्रियों की कितने काल की स्थिति कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! एक अपेक्षा से जैसा पूर्व में कहा गया है वैसा ही यहां समझना चाहिये। इसी प्रकार पुरुष की स्थिति और नपुंसक की स्थिति आदि का कथन भी पूर्ववत् समझ लेना चाहिये। तीनों (स्त्री, पुरुष और नपुंसक) की संचिट्ठणा (कायस्थिति) और अन्तर भी पूर्व में जिस प्रकार कहा गया है उसी प्रकार यहां भी कह देना चाहिये।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में स्त्रियों आदि की स्थिति का कथन किया गया है। जैसे पूर्व में स्त्री प्रकरण में स्त्रियों की पृथक् पृथक् रूप से स्थिति का प्रतिपादन किया गया है उसी प्रकार यहां समुदाय रूप से स्त्रियों की स्थिति आदि का प्रतिपादन समझ लेना चाहिये, अत: यहां पुनरुक्ति दोष नहीं हैं। इसी प्रकार समुदाय रूप से पुरुषों और नपुंसकों की भी स्थिति समझ लेनी चाहिये। स्त्री, पुरुष और नपुंसकों की कायस्थिति (संचिट्ठणा) और अन्तर का पूर्व में पृथक् पृथक् रूप से कथन किया गया है उसी को यहां समुदाय रूप से समझ लेना चाहिये।
पुरुषों से स्त्रियों की अधिकता - तिरिक्खजोणित्थियाओ तिरिक्खजोणियपुरिसेहितो तिगुणाओ तिरूवाहियाओ, मणुस्सित्थियाओ मणुस्सपुरिसेहितो सत्तावीसइ गुणाओ सत्तावीसइरूवाहियाओ, देवित्थियाओ देवपुरिसेहितो बत्तीसइगुणाओ बत्तीसरूवाहियाओ। से तं तिविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता॥ ..
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