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________________ द्वितीय प्रतिपत्ति - नव विध अल्पबहुत्व १७७ - नव विध अल्पबहुत्व एएसिणं भंते! इत्थीणं पुरिसाणं णपुंसगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा पुरिसा इत्थीओ संखेज्जगुणा णपुंसगा अणंतगुणा॥ ___ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन स्त्रियों में, पुरुषों में और नपुंसकों में कौन किससे कम, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक है? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े पुरुष, उनसे स्त्रियाँ संख्यातगुणी और उनसे नपुंसक अनन्तगुणा हैं। विवेचन - यह सामान्य से स्त्री, पुरुष और नपुंसक का प्रथम अल्पबहुत्व है। ... एएसि णं भंते! तिरिक्खजोणित्थीणं तिरिक्खजोणिय पुरिसाणं तिरिक्खजोणिय णपुंसगाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा तिरिक्खजोणियपुरिसा तिरिक्खजोणित्थीओ असंखेज्जगुणाओ तिरिक्खजोणिय णपुंसगा अणंतगुणा॥ ___ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन तिर्यंच योनिक स्त्रियों में, तिर्यंचयोनिक पुरुषों में और तिर्यंचयोनिक नपुंसकों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? . ____उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े तिर्यंचयोनिक पुरुष, उनसे तिर्यंचयोनिक स्त्रियाँ असंख्यातगुणी और उनसे तिर्यंचयोनिक नपुंसक अनंतगुणा हैं। - विवेचन - यह दूसरा अल्पबहुत्व सामान्य से तिर्यंच स्त्री, पुरुष और नपुंसक के विषय में है। एएसि णं भंते! मणुस्सित्थीणं मणुस्सपुरिसाणं मणुस्स णपुंसगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्या वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा मणुस्स पुरिसा मणुस्सित्थीओ संखेजगुणाओ मणुस्स णपुंसगा असंखेज्जगुणा॥ . . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इन मनुष्य स्त्रियों में, मनुष्य पुरुषों में और मनुष्य नपुंसकों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े मनुष्य पुरुष, उनसे मनुष्य स्त्रियाँ संख्यातगुणी और उनसे मनुष्य नपुंसक असंख्यातगुणा हैं। विवेचन - सामान्य से मनुष्य स्त्री, पुरुष और नपुंसक विषयक यह तीसरा अल्पबहुत्व है। एएसि णं भंते! देविस्थीणं देवपुरिसाणं णेरइयणपुंसगाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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