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द्वितीय प्रतिपत्ति - नपुंसक का अंतर
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उत्तर - हे गौतम! नपुंसक का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट कुछ अधिक (सातिरेक) सागरोपम शत पृथक्त्व का होता है।
विवेचन - नपुंसक, नपुंसक पर्याय को छोड़ने के पश्चात् कितने काल के बाद पुनः नपुंसक होता है उस काल को नपुंसक का अंतर कहते हैं। सामान्य नपुंसक का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक सागरोपम शत पृथक्त्व का कहा है क्योंकि व्यवधान रूप में पुरुषत्व और स्त्रीत्व का कालमान इतना ही होता है।
संग्रहणी गाथाओं में भी कहा है - इत्थिनपुंसा संचिट्ठणेसुपुरिसंतरे य समओ उ। पुरिस नपुंसा संचिट्ठर्णतरे सागरपुहुतं॥
अर्थात् - स्त्री और नपुंसक की संचिट्ठणा (कायस्थिति) और पुरुष का अंतर जघन्य एक समय है तथा पुरुष की संचिट्ठणा और नपुंसक का अंतर उत्कृष्ट से सागर पृथक्त्व (पदैकदेशे पदसमुदायोपचार से सागरोपम शत पृथक्त्व) है। .
जेरइयणपुंसगस्स णं भंते! केवइयं कालं अंतर होइ? ... गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तरुकालो, रयणप्पभापुढवी जेरझ्य णपुंसगस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तरुकालो, एवं सव्वेसिं जाव अहेसत्तमा।
कठिन शब्दार्थ- तरुकालो- वनस्पतिकाल। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक नपुंसक का अंतर कितने काल का होता है ?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिक नपुंसक का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का है। रत्नप्रभा पृथ्वी नैरयिक नपुंसक का जघन्य अंतर अंतर्मुहूर्त का और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का है इसी प्रकार अधः सप्तम पृथ्वी नैरंयिक नपुंसक का अंतर कह देना चाहिये।
विवेचन - सामान्य रूप से नैरयिक नपुंसक का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। . सातवीं नरक से निकल कर तंदल मत्स्यादि भव में अंतर्महर्त तक रह कर पुनः सातवीं नरक में जाने की अपेक्षा जघन्य अंतर अंतर्मुहूर्त कहा गया है। उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का अंतर नरक भव से निकल कर परम्परा से निगोद में अनंतकाल तक रहने की अपेक्षा समझना चाहिये। इसी प्रकार सातों नरक पृथ्वियों के नपुंसकों का अंतर समझना चाहिये। ... तिरिक्खजोणिय णपुंसगस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहुत्तं साइरेगं।
एगिदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दो
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