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________________ - द्वितीय प्रतिपत्ति –'नपुंसक की स्थिति १६१ ६. तमःप्रभा नैरयिक नपुंसक की जघन्य स्थिति १७ सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति बावीस सागरोपम। ७. अधःसप्तम नैरयिक नपुंसक की जघन्य स्थिति २२ सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम। तिरिक्खजोणिय णपुंसगस्स णं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडी। एगिंदियतिरिक्खजोणिय णपुंसगस्स णं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई। पुढवीकाय एगिंदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगस्स णं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं सव्वेसि एगिदिय णपुंसगाणं ठिई भाणियव्वा, बेइंदिय तेइंदिय चउरिदिय णपुंसगाणं ठिई भाणियव्वा। पंचिंदिय तिरिक्खजोणियणपुंसगस्स णं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडी एवं जलयर तिरिक्ख० चप्पय थलयर उरपरिसप्पभुयपरिसप्प खहयर तिरिक्खजोणिय णपुंसगाणं सव्वेसिं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडी। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! तिर्यंच योनिक नपुंसक की स्थिति कितने काल की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! तिर्यंच योनिक नपुंसक की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्व कोटि की है। . .. प्रश्न - हे भगवन् ! एकेन्द्रिय तिर्यंच योनिक नपुंसक की स्थिति कितने काल की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! एकेन्द्रिय तिर्यंच योनिक नपुंसक की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बावीस हजार वर्षों की है। ... हे भगवन्! पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक नपुंसक की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष की है। सभी एकेन्द्रिय नपुंसकों की स्थिति कह देनी चाहिये। बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय नपुंसकों की स्थिति भी कहनी चाहिये। प्रश्न - हे भगवन्! पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक नपुंसक की स्थिति कितने काल की कही गई है? उत्तर - हे गौतम! जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्व कोटि की स्थिति है इसी प्रकार जलचर तिर्यंचयोनिक, चतुष्पद स्थलचर, उरपरिसर्प, भुजपरिसर्प, खेचर तिर्यंचयोनिक नपुंसक की स्थिात जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्व कोटि की है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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