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________________ १३४ जीवाजीवाभिगम सूत्र पश्चिम विदेह की स्त्रियों के पाठ में भी धर्माचरण की अपेक्षा एक समय के अन्तर का पाठ अशुद्ध होने की संभावना है। उपर्युक्त सभी स्थानों में अन्तर्मुहूर्त का पाठ होना उचित लगता है। अकम्मभूमगमणुस्सित्थीणं भंते! केवइयं कालं अंतरं होइ? गोयमा! जम्मणं पडुच्च जहणणेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहत्तमब्भहियाई उक्कोसेणं वणस्सइकालो, संहरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो, एवं जाव अंतरदीवियाओ। भावार्थ-प्रश्न- हे भगवन्! अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियों का अंतर कितने काल का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! जन्म की अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल तथा संहरण की अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल। इसी प्रकार यावत् अन्तरद्वीपों की स्त्रियों का अंतर समझना चाहिये। विवेचन - अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियों का जन्म की अपेक्षा अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का कहा गया है। जघन्य अंतर इस प्रकार समझना चाहिये - कोई अकर्मभूमिज स्त्री मर कर जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले देव रूप में उत्पन्न हुई वहां वह दस हजार वर्ष की आयु को भोग कर और वहां से च्यव कर जघन्य अंतर्मुहूर्त की स्थिति वाले कर्मभूमिज मनुष्य पुरुष या मनुष्य स्त्री के रूप में उत्पन्न हुई क्योंकि देवलोक से च्यव कर जीव सीधा अकर्मभूमि में उत्पन्न नहीं होता वहां वह अंतर्मुहूर्त की आयु भोग कर फिर अकर्मभूमि की स्त्री रूप से उत्पन्न हुई, इस अपेक्षा से अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्री का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष का कहा गया है। संहरण की अपेक्षा अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का है। जघन्य और उत्कृष्ट अंतर का स्पष्टीकरण इस प्रकार हैं - कोई अकर्मभूमिज स्त्री संहृत होकर कर्मभूमि में लाई जावे और यहाँ एक अंतर्मुहूर्त तक के काल में फिर विचारधारा के परिवर्तन हो जाने से वह पुनः वहीं ले जाई जावे इस अपेक्षा से जघन्य अंतर्मुहूर्त कहा गया है। कोई अकर्मभूमिज स्त्री कर्मभूमि में संहृत होकर लाई जावे और अपनी आयु के क्षय होने के बाद फिर वह अनन्त काल तक वनस्पति आदि में परिभ्रमण करके फिर वहां से किसी के द्वारा संहृत हो जावे तो इस प्रकार अकर्मभूमिज स्त्री का संहरण की अपेक्षा उत्कृष्ट कालमान कहा गया है। इसी प्रकार हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यकवर्ष, देवकुरु, उत्तरकुरु और अन्तरद्वीपों की मनुष्य स्त्रियों का भी अन्तर जन्म और संहरण की अपेक्षा समझ लेना चाहिये। देवित्थियाणं सव्वासिं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो॥४९॥ भावार्थ - सभी देवस्त्रियों का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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